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________________ १५।१६,१७ 7 इसी तरह न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० ३५८ ) में गीता ( २।१६) का "नाभावो विद्यते सतः" अंश प्रमाणरूपसे उद्धृत किया गया है। पतञ्जलि और प्रभाचन्द्र-पाणिनिसूत्रके ऊपर महाभाष्य लिखनेवाले ऋषि पतञ्जलिका समय इतिहासकारोंने ईसवी सन् से पहिले माना है। आ० प्रभाचन्द्रने जैनेन्द्रव्याकरणके साथ ही पाणिनिव्याकरण और उसके महाभाष्यका गभीर परिशीलन और अध्ययन किया था। वे शब्दाम्भोजभास्करके प्रारम्भमें स्वयं ही लिखते हैं कि "शब्दानामनुशासनानि निखिलान्याध्यायताऽहर्निशम्" . . आ० प्रभाचन्द्रका पातञ्जलमहाभाष्यका तलस्पर्शी अध्ययन उनके शब्दाम्भो. जभास्करमें पद पद पर अनुभूत होता है। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ. २७५ ) में वैयाकरणोंके मतसे गुण शब्दका अर्थ वताते हुये पातञ्जलमहाभाष्य (५११।११९) से “यस्य हि गुणस्य भावात् शब्दे द्रव्यविनिवेशः" इत्यादि वाक्य उद्धृत किया गया है । शब्दोंके साधुलासाधुल-विचारमें व्याकरणकी उपयोगिता का समर्थन भी महाभाष्यकी ही शैलीमें किया है। . भर्तृहरि और प्रभाचन्द्र-ईसाकी ७ वीं शताब्दी में महरि नामले प्रसिद्ध वैयाकरण हुए हैं। इनका वाक्यपदीय ग्रन्थ प्रसिद्ध है। ये शब्दाद्वैतदर्शनके प्रतिष्ठाता माने जाते हैं। आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रमें शब्दाद्वैतवादके पूर्वपक्षको वाक्यपदीय की अनेक कारिकाओंको उद्धृत करके ही परिपुष्ट किया है । शब्दोंके साधुल-असाधुत्व विचार में पूर्वपक्षका खुलासा करनेके लिए वाक्यपदीयकी सरणीका पर्याप्त सहारा लिया है । वाक्यपदीयके द्वितीयकाण्डमें आए हुए “आख्यातशब्दः" आदि दशविध या अष्टविध वाक्यलक्षणोंका सविस्तर खण्डन किया है । इसी तरह प्रभाचन्द्रकी कृति जैनेन्द्रन्यासके अनेक प्रकरणोंमें वाक्यपदीयके अनेक श्लोक उद्धृत मिलते हैं । शब्दद्वैतवादके पूर्वपक्षमें वैखरी आदि चतुर्विधवाणीके खरूपका निरूपण करते समय प्रभाचन्द्रने जो "स्थानेषु विवृते वायौ" आदि तीन श्लोक उद्धृत किये हैं वे मुद्रित वाक्यपदीयमें नहीं हैं । टीकामें उद्धृत हैं। व्यासभाष्यकार और प्रभाचन्द्र-योगसूत्र पर व्यासऋषि का व्यासभाष्य प्रसिद्ध है। इनका समय ईसाकी पञ्चम शताब्दी तक समझा जाता है। आ० प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० १०९ ) में योगदर्शन के आधारसे ईश्वरवादका पूर्वपक्ष करते समय योगसूत्रोंके अनेक उद्धरण दिए हैं। इसके विवेचनमें व्यासभाष्यकी पर्याप्त सहायता ली गई है । अणिमादि अष्टविध ऐश्वर्यका वर्णन योगभाष्यसे मिलता जुलता है । न्यायकुमुदचन्द्रमें योगभाष्यसे “चैतन्यं पुरुषस्य स्वरूपम्" "चिच्छक्तिरपरिणामिन्यप्रतिसङ्कमा" आदि वाक्य उद्धृत किये गये हैं। . ईश्वरकृष्ण और प्रभाचन्द्र-ईश्वरकृष्णकी सांख्यसप्तति या सांख्यकारिका
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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