SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४ आनन्दघन का रहस्यवाद उपदेशात्मक पद आनन्दघन के पदों में लोकमंगल की भावना के भी दर्शन होते हैं । वे जैन परम्परा के श्रेष्ठ सन्त थे । उनकी रचनाओं में मानव के आत्मकल्याण का सन्देश निहित है । इस सम्बन्ध में उन्होंने उदारता, सत्संग, पुद्गल की नश्वरता, दान, लघुता एवं अहंता - त्याग, वैराग्य, नामस्मरण आदि उपदेशात्मक बोधप्रद पदों की रचना की है । उनका सुप्रसिद्ध 'राम कहौ रहिमान कहौ" पद तत्कालीन युग में राम-रहीम, कृष्ण - महादेव तथा पार्श्वनाथ और ब्रह्म में एकता स्थापित करने एवं हिन्दू और मुसलमानों के पारस्परिक मतभेदों को मिटाने का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है । 'क्या सोवै उठि जाग बाउरे" पद में आयु की नश्वरता पर जीवमात्र को आनन्दघन का उपदेश है - हे मूढ़ मानव ! अब मोह निद्रा से जागृत हो । आयु अंजलि के जल की भांति दिन-प्रतिदिन क्षीण होती जा रही है । इसी तरह 'या पुद्गल का क्या विसवासा' पद में पुद्गल की नश्वरता का उपदेश है । 'बहेर बहेर नहीं आवे रे अवसर' एवं 'जीउ जाने मेरी सफल घरी'५ वैराग्योत्पादक पद कहे जा सकते हैं । इसी तरह 'हमारी लौ लागी प्रभु नाम' ६ पद में नामस्मरण की महत्ता का दिग्दर्शन होता है । 'अवधू क्या मांगु गुन हीना पद में आनन्दघन ने अपनी आत्मा को सम्बोधित करते हुए लघुता व्यक्त की है और 'साधु संगति बिनु कैसे पड़ परम महारस धाम री ' ' पद में उनके अनुसार सत्संग के बिना आत्मानुभवरूपी महान् रसामृत को नहीं प्राप्त किया जा सकता । इस प्रकार, आनन्दघन के पदों में भक्ति, योग, अध्यात्म, दर्शन, ज्ञान, वैराग्य, स्वानुभूति, आत्मानुभव - रस, उदारता, सत्संग-माहात्म्य, शृङ्गार, विरह-मिलन आदि समस्त विषयों का समावेश हुआ है । १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ६५ । २. वही, पद १ । ३. वही, पद १०७ । ४. वही, पद ४८ । ५. वही, पद ३ । ६. वही, पद ७७ । ७. वही, पद १० । ८. वही, पद ६२ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy