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आनन्दघन का रहस्यवाद
उपाध्याय यशोविजय विरचित इसी अष्टपदी के आधार पर डा० वासुदेव सिंह भिन्न निर्णय देते हैं । उपाध्याय यशोविजय का देहोत्सर्ग वि० सं० १७४५ में हुआ। यदि आनन्दघन का वि० सं० १७३२ में देहोत्सर्ग हुआ होता तो उपाध्याय यशोविजय ने श्रद्धेय आनन्दघन के देहविलय के सम्बन्ध में अपना विषाद अवश्य प्रकट किया होता ? किन्तु उन्होंने कहीं भी अपनी कृतियों में शोक व्यक्त नहीं किया है। इससे डा० वासुदेव सिंह आनन्दघन का देहोत्सर्ग उपाध्याय यशोविजय के स्वर्गवास के बाद अर्थात् वि० सं० १७४५ के पश्चात् मानते हैं । '
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इसी अष्टपदी का आधार लेकर 'आनन्दघन ग्रन्थावली' में स्वर्गीय उमरावचन्द जरगड और मेहताबचन्द खारैड आनन्दघन के जन्म-सम्वत् का अनुमान करते हैं । यह माना जा सकता है कि उपाध्याय यशोविजय का जन्म लगभग वि० सं० १६७० में हुआ होगा । यशोविजय से आनन्दघन आयु में ज्येष्ठ थे । अतः उनका जन्म वि० संवत् १६६० के आसपास हुआ होगा ।
श्री मोतीचन्द कापड़िया ने भी आनन्दघन का जन्म वि० सं० १६६०. और देहोत्सर्ग का समय वि० सं० १७२० - १७३० के बीच माना है ।
पं० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने आनन्दघन का समय वि० सं० १७०० के आसपास माना है । डा० अम्बाशंकर नागर की मान्यता है कि आनन्दघन वि० सं० १७०० से १७३१ तक की अवधि में विद्यमान थे ।
मोहनलाल दलीचन्द देसाई के अनुसार वे वि० सं १६५० से वि० सं० १७१० तक अवश्य विद्यमान रहे होंगे । पंन्यास सत्यविजय गणि का जन्म लगभग वि० सं० १६५६ माना गया है । वे आनन्दघन के बड़े भाई थे, इसकी पुष्टि 'श्रीसमेत शिखरतीर्थनां ढालियां' की रचना से होती । इससे स्पष्ट है कि आनन्दघन का जन्म उसके बाद ही हुआ होगा ।
अपभ्रंश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद, पृ० १०४-१०६ । आनन्दघन ग्रन्थावली, पृ० १४ ।
१.
२.
३. श्रीआनन्दघन जी नां पदो, भाग १, पृ० १९ । घनानन्द कवित्त, भूमिका, पृ० १५ ।
४.
५. गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रन्थ, पृ० ३४ |
६.
श्री महावीर जैन विद्यालय रजत महोत्सव ग्रन्थ आनन्दघन अने श्री यशोविजय, पृ० २०३ ।
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लेख - 'अध्यात्मी