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रहस्यवाद : एक परिचय आधुनिक हिन्दी कवियों में रहस्यवाद ___ कहा जा सकता है कि आधुनिक रहस्यवाद का उदय छायावाद की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है । आधुनिक युग में प्रकृति को लेकर रहस्यवाद की सृष्टि की गई है। प्रकृतिमूलक रहस्यवाद सुमित्रानन्दन पन्त की रचनाओं में पाया जाता है ।
आधुनिक युग के रहस्यवादी कवियों में प्रमुख रूप से प्रसाद, निराला, पन्त और महादेवी वर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं । इन कवियों के रहस्यवाद में कल्पनातत्त्व प्रमुख है। इनके रहस्यवाद में साधनात्मक रहस्यवाद के दर्शन नहीं होते।
आधुनिक युग के हिन्दी रहस्यवादी कवियों में महादेवी वर्मा का स्थान सर्वोपरि है। प्रेम और विरह की वे अद्वितीय गायिका हैं। वस्तुतः इस युग के रहस्यवादी कवियों की अनुभूति वास्तविक न होकर कल्पना प्रधान है। जैनधर्म में रहस्यवाद __ भारतीय साहित्य-जगत् में जैनेतर धर्मों का रहस्यवाद जितना अधिक चर्चित रहा है, उतना जैनधर्म का नहीं। व्यक्ति 'जैनधर्म में रहस्यवाद' नाम सुनकर ही चौक उठता है। वह तत्काल कह सकता है कि जैनधर्म में रहस्यवाद हो ही नहीं सकता; क्योंकि जैन दर्शन ईश्वर नामक सत्ता में विश्वास नहीं करता। वस्तुतः रहस्यवाद का आधार आस्तिकता है और आस्तिकता की भित्ति आत्म-परमात्मवाद है। रहस्यवाद का प्रारम्भ आत्म-अस्तित्व से होता है और उसका (रहस्यवाद का) समापन होता है-परमात्म-साक्षात्कार में ।
यद्यपि जैन-परम्परा में ईश्वर या ब्रह्म जैसी किसी स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार नहीं किया गया है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि उसमें परमात्मा का प्रत्यय ही अनुपस्थित है। उसके अनुसार आत्मा की शुद्ध अवस्था का नाम ही ‘परमात्मा' है जिसे वैदिक शब्दावली में 'परम ब्रह्म' कहा जाता है।
जैनधर्म में आत्मा की तीन अवस्थाएँ मानी गई हैं(१) बहिरात्मा (२) अन्तरात्मा (३) परमात्मा