SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनन्दधन का रहस्यवाद भगवदगीता, भागवतपुराण एवं भक्ति-सूत्र में रहस्यवाद न केवल वेदों एवं उपनिषदों में, अपितु भगवद्गीता में भी रहस्यमय तत्त्वों की विचारणा पाई जाती है । भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय में रहस्यात्मक अनुभूति का वर्णन अपने सर्वोत्कृष्ट रूप में उपलब्ध है। अर्जन कहता है-'उस विराट् स्वरूप का न आदि है, न मध्य और न अन्त'।' गीता में वर्णित विश्वरूप की कल्पना अद्वैतमूलक रहस्य-भावना का चरम विकास है। भागवतपुराण, शाण्डिल्य भक्तिसूत्र एवं नारद-भक्ति सूत्र में भी भक्तिपरक रहस्यवादी भावना का सम्यक् निदर्शन हुआ है । प्रोफेसर आर०डी० रानाडे के मतानुसार भागवतपुराण भारत के प्राचीन रहस्यवादियों के वर्णन तथा भावोद्गारों का कोष है। भागवत में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव के जीवनचरित और साधना पद्धति का रहस्यमय वर्णन है। हिन्दी के मध्यकालीन सन्त और भक्त साहित्य पर भागवतपुराण का सर्वाधिक प्रभाव है। भागवत की तरह शाण्डिल्य और नारदभक्ति सूत्रों में भी भक्तिमूलक रहस्यवादी भावना का वर्णन हुआ है। इनमें गौणी भक्ति और मुख्य रूप से प्रेमाभक्ति का सम्यक् विवेचन है। साथ ही भगवत्-प्रेम के स्वरूप को अनिर्वचनीय कहा गया है। सारांशतः यह कहा जा सकता है कि भागवतपुराण, शाण्डिल्य भक्तिसूत्र एवं नारद-भक्ति-सूत्र रहस्यवादी चिन्तन के विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। बौद्धधर्म में रहस्यवाद समस्त वैदिक साहित्य में मुख्यतः अद्वैततत्त्व के आधार पर रहस्यभावना की अभिव्यक्ति हुई है। इसके फलस्वरूप तत्त्व-चिन्तन में निराकार १. नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादि पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप । -गीता, ११।१६ २. मिस्टिसिज्म इन महाराष्ट्र, पृ० ८। ३. श्रीमद्भागवत्, स्कन्ध ५, अध्याय ५ । ४. अनिर्वचनीयं प्रेम स्वरूपम् । -~-नारदभक्तिसूत्र, ५१
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy