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आनन्दघन का रहस्यवाद
है और संकल्प करता है वही आत्मा है।
आत्मा का लक्षण प्रतिपादित करने के पहले यहां इस बात का भी उल्लेख कर देना अप्रासंगिक नहीं होगा कि जैन शास्त्रों में आत्मा, जीव, चेतन, प्राणी, सत्त्व आदि गब्द पर्यायवाची हैं। जैनागमों में 'आत्मा' शब्द के स्थान पर अधिकांशतः 'जीव' शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन-दर्शन में आत्मा और जीव शब्द एक ही अर्थ में स्वीकृत हैं। आनन्दघन ने भी आत्मा शब्द के स्थान पर चेतन, अवधू आदि शब्दों का प्रयोग बहुलता से किया है। आत्मा का लक्षण ___ जैन-परम्परा में आत्मा का लक्षण उपयोग या चेतना सर्वमान्य रहा है। भगवती,' स्थानांग,२ उत्तराध्ययन आदि जैनागमों के अनुसार आत्मा का लक्षण उपयोग है। परवर्ती जैनाचार्यों एवं सन्तों-साधकों १. उवओग लक्खणेणं जीवे ।
-भगवती, १३।४।४८० २. गुणओ उवओग गुणो।
ठाणांग, ५।३।५३० ३. जीवो उवओग लक्खणो।
-उत्तराध्ययन, २८३१० ४. उपयोगो लक्षणम् ।
-तत्त्वार्थसूत्र, २१८ (ख) सामान्यं खलु लक्षणमुपयोगो भवति सर्व जीवानां साकारोऽनाकारश्च सोऽष्ट भेदश्चर्तुधा तु ।
-प्रशमरति प्रकरण, कारिक १९४ । (ग) सव्वण्हुणाण दिट्ठो जीवो उवओग लक्खणो णिचं । -समयसार, २४ एवं उवओग एव अहमिक्को
-समयसार, ३७। (घ) चेदण भावो जीओ चेदण गुण वज्जिया सेसा
-नियमसार, ३७ ।। (ङ) उवओगो खलु दुविहो णाणेणय दंसणेण संयुत्तो। जीवस्स सव्वकालं अणण्ण भूदं वियाणिहि ॥
-पंचास्तिकाय, ४० ।