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________________ आनन्दघन की विवेचन-पद्धति ___ १२१ निहित हो, जिसे सामान्य जन न समझ सकें तथा जो पढ़ने पर असंगत एवं बेसिर-पैर की प्रतीत हो; किन्तु गहराई में प्रवेश करने पर उसका गम्भीर अर्थ निकले। मुख्य रूप से इसमें आध्यात्मिक तथ्यों को लोक विपरीत ढंग से वर्णित किया जाता है। लोक जीवन में यह पहेली और लिखित साहित्य में उलटवासी अथवा रहस्यात्मक उक्ति के रूप में प्रसिद्ध हिन्दी-साहित्य में इसे उलटवासी, अटपटो बानी, सन्ध्या-भापा, गूढोक्ति आदि कहा जाता है । जैन परिभाषा में सम्भवतः इसे 'हरियाली,' किंवा 'उलटोबानी' कहा गया है। इसमें सन्देह नहीं कि इस पद्धति की परम्परा अतिप्राचीन है । इसका मूल वेदों, उपनिषदों३ तथा बौद्ध -साहित्य में भी खोजा जा सकता है। वस्तुतः इस पद्धति का सबसे अधिक व्यापक प्रयोग सिद्धों और नाथ-पन्थी योगियों ने किया । आगे चलकर इस परम्परा को कबीर, दादू, रज्जब आदि ने भी अपनाया। सन्त आनन्दघन पर भी कबीर आदि की इस शैली का प्रभाव दृष्टिगत होता है। ___ रहस्यात्मक उक्तियां प्रायः जटिल, रहस्यमय और अस्पष्ट होती हैं जिनका अर्थ जानने के लिए कठिन अभ्यास करना पड़ता है। यद्यपि यह स्पष्ट है कि आनन्दघन के पदों में कहीं भी 'अटपटी बानी, "उलटीचाल,' 'उलटवासी' या 'हरियाली' शब्द का प्रयोग नहीं दिखाई देता, तथापि इनके पदों को पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इनके अधिकांश पद रहस्यात्मक उक्ति के अन्तर्गत आते हैं। कबीर की भांति इन्होंने भी कहीं-कहीं 'अकथ कहानी आनन्दघन बाबा,' 'आनन्दघन इस पद कू बूझे,' 'अवधू सो जोगी गुरु मेरा; इन पद का करे रे निवेडा 'इत्यादि शब्दों का प्रयोग पदों के आदि या अन्त में किया है, जो उनकी रहस्यात्मक-पद्धति १. श्री आनन्दघन जी नां पदो, भाग २, परिशिष्ट, पृ० ४९७ । २. (क) ऋग्वेद, २।१।१५२।३, वही, ३।४१५८०३, वही, ४।५।४७१५ (ख) अथर्ववेद, ९।९।५ ३. (अ) ईशोपनिषद्, ४-५ । (ब) कठोपनिषद् १४२०२० (स) श्वेताश्वतर उपनिषद्, ३।१९-२० ४. धम्मपद, पकिण्णवग्गो ५-६, चर्यापद २, ११, ३३ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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