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________________ आनन्दघन की विवेचन-पद्धति ११९ निकलता है, जो १४ रत्नों में से ग्यारहवां रत्न है । इतना ही नहीं, अन्ततः इसी हृदयमन्थन से चौदहवां परमानन्द रूप अन्तिम रत्न अमृत प्राप्त होता है । समता सद्वृत्ति रूप है और सद्वृत्ति देवत्व की प्रतीक है हिन्दू मान्यतानुसार देवताओं ने अमृत प्राप्त किया और दानवों ने विष । इसीलिए आनन्दघन ने इसी दृष्टि से कहा है कि समता रूप सद्वृत्तियों ने विषय-वासना रूप काल- कूट (विष) को छोड़कर शान्ति रूप अमृत रस को ग्रहण किया । माया-ममता आदि असद् वृत्ति रूप हैं और असद् वृत्तियां दानवों की प्रतीक हैं । अतः माया-ममता आदि असद्वृत्ति रूप दानवों ने विषय-वासना रूप विष को पाया । हिन्दू परम्परा में ब्रह्मा को चार मुख और हजार नेत्र तथा हजार पैर वाला कहा गया है । अतः विष्णु की पत्नी लक्ष्मी ब्रह्मा के इस विकराल रूप को देखकर डर जाती हैं, तब विष्णु उसे प्रेमपूर्वक गले लगा लेते हैं । यहां आनन्दघन ने क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चतुर्मुखी मोह रूप महाराक्षस को चतुरानन (ब्रह्मा) का रूपक दिया है, क्योंकि क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चार मुखवाले मोह-राक्षस के भी हजार नेत्र और हजार पैर होते हैं । चतुर्मुखी मोह के अनेक भेद-प्रभेद हैं । इसलिए इस विकराल मोह रूप ब्रह्मा के चार मुख, हजार नेत्र एवं हजार पैर देखकर आत्मारूपी विष्णु की पत्नी समतारूपी लक्ष्मी भयभीत हो जाती है । ऐसी स्थिति में आनन्द रूप आत्मा जो कि राग-द्वेष रहित और पुरुषों में श्रेष्ठ है, ऐसे वीतरागदेव रूप विष्णु ने समता रूप लक्ष्मी को प्रसन्नतापूर्वक अपना लिया । वास्तव में प्रस्तुत पद में आनन्दघन ने श्रद्धा से मानी जानेवाली हिन्दू पौराणिक कथा का अत्यन्त बुद्धिगम्य सुन्दर रूपक देकर कल्पना-शक्ति का अद्भुत कौल प्रदर्शित किया है । आनन्दघन ने एक अन्य पद में रूपक द्वारा हृदय विदारक दृश्य प्रस्तुत किया है । इसमें शुद्ध चेतना रूप समता-प्रिया, शुद्ध चेतन रूप अपने प्रियतम से राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया लोभादि दुष्टों के काले कारनामों का भण्डाफोड़ करती हुई कहती है कि हे कंत ! आपने वीर्यरूपी एक बूंद से शरीररूप महल बनाया और उसमें आपने अपनो ज्योति भी आलोकित की है किन्तु इस शरीर रूप महलमें तो राग-द्वेषरूप दो चोर बैठे हुए हैं, जो सदैव आत्मगुणों की चोरी करते रहते हैं। साथ ही, इस महल में श्वास और उच्छ
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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