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________________ १६ अहो मैं मुझको नमूनमस्कार मुझे, मुझे नमस्कार है वह तू ही है जिसे अमित फल दान दाता की भेंट हुई है. शान्ति जिन यही मेरी पुकार है॥ भावानुवाद फिर अन्यत्र भी कहा है कि. नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं नमो नमः । नमो मो नमो मह्य, मह्यमेव नमो नमः ।। अर्थात् परमात्मा को किया हुआ नमस्कार ही स्वयं की आत्मा को नमस्कार है तथा स्वयं की शुद्ध आत्मा को किया हुआ नमस्कार ही परमात्मा को नमस्कार है। नमो द्वारा सर्व समर्पण नमो आत्मनिवेदन रूप भक्ति का एक प्रकार है । नमो द्वारा नमस्कार करने वाला परमात्मा के आगे "मैं तुम्हारा ही अंश हूँ, सेवक हूँ, दास हूँ", ऐसा स्वात्मनिवेदन करता है। नमो द्वारा प्रभु का एवं प्रभु के नामादि का श्रवण, कीर्तन एवं स्मरण होता है, प्रभु के रूप को वन्दन, अर्चन एवं पूजन होता है। वैसे ही प्रभु के समक्ष यह आत्मनिवेदन होता है कि मैं प्रभु का दास हूँ, सेवक हूँ एवं अंश हूँ। नमो द्वारा परमात्मा के साथ भक्ति का तात्त्विक सम्बन्ध स्थापित होता है नमो परब्रह्म के साथ योग्य सम्बन्ध स्थापित करवाने वाला महा मंत्र है एवं वह आत्मनिवेदन पूर्वक स्वशरणागति को सूचित करता है। अहम्मन्यता, ममता, आदि पाप है जिनका मूल अज्ञानता
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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