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________________ १२ से श्रव्यक्त मे ले जाता है । प्रकृति से परामुख बनाकर पुरुष के सन्मुख ले जाता है । ऋत वह दीप-द्वीप है, चारण-शरण है, गति एव आधार है । 'नमो' मन्त्र दुष्कृत की गर्हा कराने वाला होने से क्रमश दीप, द्वीप एव त्राण है। मुकृतानुमोदन कार्य होने से गति एव प्रतिष्ठा रूप है, सुकृत तथा दुष्कृत से परे विशुद्ध श्रात्मतत्त्व के श्रभिमुख ले जाने वाला होने से परम शरणगमनरूप भी है इस प्रकार नमो मन्त्र भव्य जीवो के लिए परम आलम्बन रूप एवं परम आधार रूप वनकर भवदु.ख विच्छेद तथा शिवमुख की प्राप्ति करवाने मे नहायक होता है दूसरे प्रकार से यो भी कहा जा सकता है कि नमो मन्त्र स्थूल मे सूक्ष्म की ओर जाने का मन्त्र है । सूक्ष्म से सूक्ष्मतर तथा सूक्ष्मतर मे सूक्ष्मतम की ओर जाने की प्रेरणा भी 'नमो' मन्त्र से ही मिलती है । ग्ररण से श्रण तथा महान् से महान, महान, श्रात्मतत्त्व की प्राप्ति अर्थात् 'श्रणोरणीयाम्' और महतो महीयान' दोनो विशेषरणो वाली परमपद सिद्धि 'नमो' मन्त्र से होती है । शान्त रस का उत्पादक नमो अरिहतारण महामन्त्र है, शाश्वत है एव शांत रस का पान करवाने वाला है । शात रस का अर्थ है रागद्वेप विनिर्मुक्त विशुद्ध ज्ञान व्यापार को नमस्कार । अरिहंमोहादि शत्रु का नाशक है अत कारण स्वरूप है । 'अरिहं' शब्द शत्रु नाशक, पूज्यता का वाचक तथा शब्द ब्रह्म का सूचक होने से शात रसोत्पादक है । शातरस, समतारस, उपशम रस- ये सभी शब्द एकार्थक है । रागद्वेष एव सुख दुख के सवेदन से परे ज्ञान रस ही शम रस है, यही समता रस है एव शांत रस है । 'नमो अरिहतारणम्' मन्त्र ज्ञान चेतना के प्रति भक्ति उत्पन्न कर उसमे जीव को तल्लीन वनाता है ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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