________________
करवाने वाली है तथा मैत्री प्रमोदादि भावो से युक्त है जिससे यथोक्त धर्मानुष्ठान सम्पादित होता है। इसका फल इस लोक मे अर्थ, काम, आरोग्य, अभिरति व परलोक मे मुक्ति व उस मुक्ति की प्राप्ति न होने तक सद्गति, उत्तम कुल में जन्म व सद्बोध की प्राप्ति आदि अवश्य करवाता है।
दूसरी प्रकार से यह कहा जा सकता है कि नमो धर्म का वीज है क्योकि उसमें सद्धर्म व उसको धारण करने वाले सत्पुरुषो की प्रशसादि निहित है, धर्म-चिन्तन आदि उसमें अकुरित है व परम्परा से निर्वाण रूप परमफल स्थित है अत उसका आराधन अत्यन्त आदरणीय है । इस हेतु कहा गया है कि --
'वपनं धर्मवीजस्य, सत्प्रशंसादि तद्गतम् ।
तच्चिन्ताद्यकुरादि स्यात् , फलसिद्धिस्तु निवृति.।' 'नमो अरिहताण' पद के अाराधन मे धर्मबीज का वपन, धर्मचिन्तन आदि अंकुर व फलसिद्धिरूपी निवारण पर्यन्त के सुख स्थित है।
प्रागम-अनुमान-ध्यानाभ्यास _ नमो पद से धर्म का श्रवण, अरिह पद से धर्म का चिन्तन तथा ताण पद से धर्म की भावना उत्पन्न होती है । श्रुत, चिन्तन तथा भावना को क्रमश उदक (जल) पय (दूध) व अमृत तुल्य कहा गया है। उदक मे प्यास बुझाने की जो शक्ति है उससे अधिक पय मे अर्थात् दूध में है तथा उससे भी अधिक अमृत मे है। धर्म का श्रवण विपयो की जिम तृपा को शान्त करता है उससे अधिक तृपा को धर्म का चिन्तन शान्त करता है तथा उससे भी अधिक धर्म की भावना, ध्यान, निदिध्यासनादि शान्त करते है । विपयो की तृपा तथा कपायो को भुधा की तृप्त करने को शक्ति प्रथम पद की