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________________ का बीज है। सुख मात्र यदि बिना समझ के भोगा जाय तो दुःख का बोज है। जीव मात्र सत्ता से शिव है एवं चैतन्य सामान्य से जीवो मे एकता का ज्ञान समत्व विकसित करता है । द्रव्य सामान्य से सुख-दुख मे अभिन्न एक आत्मा का ज्ञान समता-भाव का कारण बनता है। समान भाव को पुरस्सर करने से समता सामयिक की सिद्धि होती है। धर्म चित्त की समान वृत्ति मे है । अहिंसा, सयम, तप आदि क्रिया चित्तवृत्ति को एक ही पालम्बन मे टिका कर रखने का साधन है। मत्रजाप की क्रिया भी मनोगुप्ति अर्थात् मन की रक्षा का साधन है। मनोगुप्ति मोक्ष का साधन है। मत्र से प्रतिवद्ध मन मनोगप्ति का साधन बन कर मोक्ष का साधन बनता है। सर्वश्रेष्ठ जपयज्ञ जप द्वारा भगवान का प्रणिधान होता है। भगवान के नाम का जप करने से वाह्य व्यापारो का निरोध होता है। शब्दादि वाह्यव्यापार रुक जाने से प्रान्तरज्योति प्रकट होती है। उसे प्रत्यक्चैतन्य कहते है। उससे ज्ञानादि गुणो की विशुद्धि होती है अत भक्ति एव श्रद्धा मे उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। ___ शास्त्र कहते है कि विशिष्ट गुणवान, पुरुषो के प्रणिधान से महाफल होता है। यह वान भगवान के नाम का जाप करने से प्रत्यक्ष अनुभव की जा सकती है । भगवान के नाम के जाप द्वारा पापनाश का स्वाभाविक कार्य होता ही है फिर वह जाप व्यगचित्त से हो कि एकाग्रचित्त से विन्तु अतीन्द्रिय शान्ति तथा अलौकिक प्रानन्द का अनुभव तो एकाग्रचित्त में
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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