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सामर्थ्य की प्रतीति है। श्रद्धा में प्राज्ञापालक की योग्यता का भाव है।
प्रयल की एकनिष्ठा में भक्त का सामर्थ्य निहित है। भगवान का सामर्थ्य उनकी अचिन्त्य शक्तिमत्ता में निहित है । यदि भगवान मे अचिन्त्य सामर्थ्य नही हो तो भक्त का प्रयल विफल है। यदि भक्त का प्रयत्न न हो तो अचिन्त्य सामर्थ्य भी लाभदायक नहीं होता।
प्रयत्न फलदायी है-ऐसा विश्वास ही श्रद्धा है। कृपा फलदायी है-ऐसा विश्वास ही भक्ति है। कृपा भगवान के सामर्थ्य की सूचिका है। प्रयत्न भक्त की श्रद्धा का सूचक शब्द है। भक्ति के प्रमाण में ही श्रद्धा स्फुरित होती है एवं श्रद्धा के प्रमाण में ही भक्ति फलित होती है।
'चले बिना इष्ट स्थान पर पहुँचा नही जा सकता'-यह श्रद्धा सूचक वाक्य है । "इष्ट स्थल पर पहुंचने के लिए ही चलने की क्रिया होती है"--यह भक्ति सूचक वाक्य है। - इष्ट स्थल मे यदि इष्टत्व की बुद्धि नही हो तो चलने की क्रिया हो ही कैसे सकती है ? वैसे ही चलने की क्रिया के विना इष्ट स्थल पर पहुंचा ही कैसे जा सकता है ?
आत्मा महिमाशाली द्रव्य है इसीलिए उसे बताने वाले परमात्मा के प्रति भक्ति जागती है। यह भक्ति क्रिया में निष्ठा उत्पन्न करती है एव यह निष्ठा प्रयत्न में परिणमित होती है। ... . श्री नमस्कार मंत्र मे श्रद्धा एव भक्ति दोनो निहित हैं । श्रद्धा नमस्कार की क्रिया पर एव भक्ति नमस्कार्य के प्रभाव पर अवलम्बित है। .
आराध्यत्वेन ज्ञानं भक्तिः' -