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________________ प्रणिधान ही मोक्ष रूपी मोदक को प्राप्त करने के सरल उपाय है। "नमो अरिहंताण" पद के ध्यान से-रटन से पुनः पुन. उच्चारण रूपी जाप एव प्रणिधान-ध्यान से वे सिद्ध हो सकते है। अत सात अक्षर के इस मत्र को मोक्ष प्राप्ति के लिए सर्वशिरोमरिण मंत्र कहा गया है। सच्चे मंत्रों का प्रभाव सच्चे मत्र देव, गुरु एव प्रात्मा के साथ तथा दूसरी तरफ मन, पवन एव आत्मा के साथ ऐक्य सधवाने वाले होने से वे सभी अन्तरायो का निवारण करवाने वाले तथा अन्तरात्मभाव की प्राप्ति करवाने वाले होते हैं। अन्तरात्मभाव का अर्थ है आत्मा में आत्मा द्वारा आत्मा की प्रतीति । उस प्रतीति को करने हेतु अथवा यदि वह हुई हो तो उसे दृढ वनाने हेतु सच्चे मन का आराधन परम सहायभूत होता है। , मत्र के अक्षरो का उच्चारण प्राणो की गति को नियमित करता है। प्राणो की गति की नियमितता मन को नियन्त्रित करती है । मन का नियन्त्रण आत्मा का प्रभुत्व प्रदान करता है । मंत्रो के अर्थो का सम्वन्ध देवतत्त्व एव गुरुतत्त्व के साथ है। अत. वह देवतत्त्व एव गुरुतत्त्व का बोध करवाकर शुद्ध आत्मतत्त्व का ज्ञान करवाता है। मन पर (आत्मा का) प्रभुत्व प्राप्त करवाने की क्रिया से एव शुद्ध आत्म तत्त्व के ज्ञान से अर्थात् सम्यक् क्रिया, सम्यक ज्ञान तथा उसकी साधना का अभ्यास करवाने के द्वारा सत्य मत्र एव उनकी साधना मोक्ष के असाधारण कारण बनते है । मनोगुप्ति एवं नमो मंत्र नित्य नमस्कार का अभ्यास भेदभाव की गहरी नदी पर मजवूत पुल बांधने की क्रिया है इसीलिए 'नमो' पद को सेतु
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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