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हो उसका पुण्य बढने से रुक जाता है। पाप का पश्चात्ताप पाप से परावर्तित होने का साधन है । पुण्य का प्रमोद ही
पुण्य की दिशा में आगे बढ़ने का उपाय है। श्री नमस्कार ___ मत्र मे पाप का पश्चात्ताप है एव पुण्य का प्रमोद है । पाप का पश्चात्ताप दुष्कृतगर्दा का ही दूसरा नाम है। पुण्य का प्रमोद ही सुकृतानुमोदन का पर्याय शब्द है।
श्री नमस्कार मत्र की प्राराधना पाप से परावर्तित होने एव पुण्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करती है। इसी से पाप निरनुबन्ध तथा पुण्य सानुबन्ध होता है । पुण्यानुबन्धी पुण्य के अर्थी तथा पापानुबन्ध से भीरु प्रत्येक मुमुक्षु आत्मा के लिए नित्य एक सौ आठ बार श्री नमस्कार मन्त्र का स्मरण अद्यावधि अप्राप्त नई आध्यात्मिक दुनिया मे प्रवेश करने का प्रवल साधन बनता है।
सीधे मार्ग पर चलना इतना कठिन नही जितना कठिन मार्ग पर चढना । श्री नमस्कार महामन्त्र जीव को अध्यात्म के मार्ग पर आरूढ करता है। शुद्ध अध्यात्म के मार्ग पर अधिरोहण के पश्चात् जीव यथाशक्ति उस मार्ग पर चलने का प्रयास करता है तथा शीघ्र या विलम्ब से अपने इष्ट स्थान पर पहुँच जाता है । शुद्ध अध्यात्म ही पापरहित होने का मार्ग है । पुण्य के उस पार भी उसी से पहुंचा जा सकता है।
श्री नमस्कार मन्त्र दुष्कृतगर्दा रूप होने से जीव को पापरहित तथा सुकृतानुमोदन रूप होने से जीव को पुण्यानुबन्धी पुण्यवाला बनाता है। श्री नमस्कार मन्त्र अरिहंतादि चार की शरण रूप होने से प्रात्मा के शुद्ध स्वरूप का प्रकाशक होता है। श्री अरिहतादि चार प्रात्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त होने से उसका पालम्वन शुद्ध स्परूप का ज्ञान तथा श्रद्धायुक्त करवाता है तथा उसी ज्ञान एव श्रद्धा के अनुसार