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________________ ५३ श्री सिद्धि पद को प्राप्त उन्नत श्री अरिहतो, वर्तमान के उत्कृष्ट -१७० तथा जघन्य २० श्री अरिहतो तथा भविष्यकाल के अनन्त श्री अरिहतो को नमस्कार होता है। साथ ही अतीतकाल के अनन्त सिद्धो को वर्तमान काल के एक समय में होने वाले उत्कृष्ट १०८ सिद्धो को तथा भविष्य के अनन्त सिद्धो को नमस्कार होता है । वैसे ही अतीतकाल के अनन्त, सिद्धो को वर्तमान काल के सभी क्षेत्रो के केवल ज्ञानियो तथा छद्मस्थ मुनियो तथा भविष्य काल के अनन्त आचार्यो, उपाध्यायो आदि साधु भगवान को नमस्कार होता है । यह नमस्कार परमेष्ठियों में स्थित समत्व को उद्देशित होने से समत्व की सिद्धि करवाता है। पाँच प्रकार के गुरु श्री नमस्कार मंत्र में पांच प्रकार के गुरु समाविष्ट हैं । श्री अरिहंत मार्गदर्शक होने से प्रेरक गुरु हैं, श्री सिद्ध अविनाशी पद प्राप्त होने से सूचक गुरु हैं। श्री प्राचार्य अर्थोपदेशक होने से वोधक गुरु हैं श्री उपाध्याय सूत्र के दाता होने से वाचक गुरु हैं एव श्री साधु मोक्ष मार्ग में सहायक होने से सहायक गुरु हैं। पंच गुरुओ को नमस्कार रूप होने से श्री नमस्कार मंत्र को गुरु मत्र अथवा पचमंगल भी कहते हैं। यह पंचमगल सूत्ररूप होते हुए भी वार-बार मनन करने योग्य होने से, साथ ही उसके सम्यक् आराधन द्वारा चमत्कारिक परिणाम आते होने से उसकी प्रसिद्धि लोक मे मंत्र रूप मे हुई है। पांच ज्ञान एवं चार शरण की तरह वे भाव मंगल हैं । द्रव्य-पाप की विशेषता को जानने वाला जीव इस मंत्र का विशेष रूप से अधिकारी होता है। ध्यान एवं लेश्या समस्त इन्द्रियो को भूमध्य आदि स्थानो मे केन्द्रित कर के जो चिन्तन होता है, उसे ध्यान कहते हैं। ध्यान के दूसरे
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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