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________________ ४६ कृतज्ञता एवं परोपकार की करणीय भाव से स्वीकृति ऋणमुक्ति निष्पन्न करती है । उपकारी के प्रति कृतज्ञता का भाव तथा अपकारी के प्रति भी उपकार करने का भाव आए बिना दोनो ऋरणो से मुक्ति असम्भव है । एक ऋण उपकार लेने से होता है । दूसरा ऋण अपकार करने से होता । अतः उभय ऋण की मुक्ति हेतु नमामि तथा खपामि दोनो भावो को आराधन की समान आवश्यकता है । नमो पद का महत्त्व नमो पद का एक अर्थ द्रव्य भाव सकोच है । द्रव्य काया एवं वारणी का तथा भाव से मन तथा बुद्धि का बाह्य पदार्थों मे से सकोच साधकर उसे ग्रात्माभिमुख बनाकर सभी महापुरुष परम पद को प्राप्त हुए हैं श्रथवा दूसरे प्रकार से द्रव्य सकोच अर्थात् शरीरादि बाह्य वस्तु के मद का त्याग तथा भाव संकोच अर्थात् मन, बुद्धि आदि के अभिमान का त्याग। इस प्रकार मद तथा मान का त्याग होने से वृत्ति श्रन्तर्मुखी होती है तथा उससे सर्वश्रेष्ठ वस्तुओ का ज्ञान एवं ध्यान फलीभूत होता है । ज्ञान का फल समता-संवर है तथा ध्यान का फल निरोधनिर्जरा है । वह उसी का वरण करता है जिसमे मन में काया तथा उपलक्षरण से पुद्गल के सयोग जनित सर्व श्रदयिक भावो का अभिमान गल गया हो। साथ ही मन एव बुद्धि तथा उपलक्षरण से सर्व प्रकार के क्षायोपशमिक भावो का भी अहंकार चला गया हो। इससे यह सिद्ध हुआ कि जाति, कुल रूप, वल, ऐश्वर्य एवं वाल्लभ्यादि प्रदयिक भावो के मद का त्याग ही मुख्य रूप से द्रव्य-संकोच है तथा तप श्रुत, ज्ञान एव बुद्धि श्रादि क्षयोपशम भावो के मान का त्याग ही मुख्यरूप से भावसंकोच है । द्रव्य तथा भाव अथवा वाह्य एव अभ्यन्तर
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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