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________________ प्रस्तावना तो इनसे भी अधिक महत्त्वके, हिंसा-अहिंसादिके विषयमें, प्रतिदिन देखने तथा सुनने में आते हैं। इन्हीं सब कारणोंसे उक्त छहों पद्योंको स्वामी समन्तभद्रके पद्य स्वीकार करने से इनकार किया जाता है और कहा जाता है कि वे 'क्षेपक' हैं। ___मेरी रायमें, इन आपत्तियांमसे सबसे पिछली आपत्ति तो एसी है जिसमें कुछ भी बल मालूम नहीं होता; क्योंकि उसकी कल्पनाका आधार एक मात्र संस्कृतटीका है। यह बिल्कुल ठीक है:और इसमें कोई सन्देह नहीं कि टीकाकारने इन दृष्टान्तोंकी जो कथाएँ दी है वे बहुत ही साधारगा तथा श्रीहीन हैं, और कहींकहीं पर नो अप्राकृतिक भी जान पड़ती हैं। उनमें भावोंका चित्रगा बिल्कुल नहीं और इमलिय व प्रायः निष्प्राण मालूम होती है । टीकाकारने, उन्हें देते हुए, इन वातका कुछ भी ध्यान रक्खा मालूम नहीं होता कि जिस व्रत, अव्रत अथवा गुणदोपादिकं विपयमें ये दृष्टान्त दिय गये हैं उनका वह स्वरूप उस कथाके पात्र में परिस्फुट ( अच्छी तरहसे व्यक्त) कर दिया गया या नहीं जो इस ग्रन्थ अथवा दूसरे प्रधान ग्रन्थों में पाया जाता है, और उसके फलप्रदर्शन भी किसी असाधारण विशेपताका उल्लेख किया गया अथवा नहीं। अनन्तमतीकी कथामें एक जगह भी 'निःकांक्षित' अंगके स्वरूपको और उसके विषयमें अनंतमतीकी भावनाको व्यक्त नहीं किया गया; प्रत्युत इसके, अनन्तमतीके ब्रह्मचर्यव्रतके माहात्म्यका ही यत्र तत्र कीर्तन किया गया है; 'प्रभावना' अंगकी लम्बी कथामें 'प्रभावना' के स्वरूपको प्रदर्शित करना तो दूर रहा, यह भी नहीं बतलाया गया कि बनकुमारने कैसे रथ चलवाया-क्या अतिशय दिखलाया और उसके द्वारा क्योंकर और क्या प्रभावना धनदेवकी कथामें इस बातको बतलानेकी शायद ज़रूरत ही नहीं
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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