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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र दृष्टान्त हैं, यह कुछ सूचित नहीं किया और न पूर्व पद्योंसे ही इसका कोई अच्छा निष्कर्ष निकलता है । पहले पद्यके साथ सम्बन्ध मिलानेसे तो यह नतीजा निकलता है कि ये पाँचों दृष्टान्त भी अहिंसादिक व्रतोंके हैं और इसलिये इनके भी पूजातिशयको दिखलाना चाहिये । हाँ,टीकाकार प्रभाचन्द्रने यह ज़रूर सूचित किया है कि ये क्रमशः हिंसादिकसे युक्त व्यक्तियोंके दृष्टान्त हैं। 'श्रीषेण' नामके पाँचवें पद्य में चार नाम देकर यह सूचित किया गया है कि ये चतुर्भेदात्मक वैयावृत्यके दृष्टान्त हैं । और 'अर्हचरणसपर्या' नामक छठे पद्य में लिखा है कि राजगृहमें एक प्रमोदमत्त ( विशिष्ट धर्मानुरागसे मस्त ) मेंडकने एक फूलके द्वारा अहन्तके चरणोंकी पूजाके माहात्म्यको महात्माओंपर प्रकट किया था। __ इन पद्योंपर जो आपत्तियाँ की जाती हैं अथवा की जा सकती हैं उनका समुच्चय सार इस प्रकार है (१) ग्रन्थके संदर्भ और उसकी कथनशैलीपरसे यह स्पष्ट है कि ग्रन्थ में श्रावकधर्मका प्रतिपादन औपदेशिक ढंगसे नहीं किन्तु विधिवाक्योंके तौरपर अथवा आदेशरूपसे किया गया है। एसी हालतमें किसी दृष्टान्त या उपाख्यानका उल्लेख करने अथवा ऐसे पद्योंक देनेकी कोई जरूरत नहीं होती और इसलिये ग्रन्थमें ये पद्य निरे अनावश्यक तथा बेमोलसे मालूम होते हैं। इनकी अनुपस्थितिसे ग्रंथके प्रतिपाद्य विषय-सम्बन्धादिकमें किसी प्रकारकी कोई बाधा भी नहीं आती। - (२) शास्त्रोंमें एक ही विपयके अनेक दृष्टान्त अथवा उपाख्यान पाये जाते हैं; जैसे अहिंसाव्रतमें 'मृगसेन' धीवरका, असत्यभाषणमें राजा 'वसु' का, अब्रह्मसेवनमें 'कडारपिंग' का और परिग्रह-विषयमें 'पिण्याकगंध' का उदाहरण सुप्रसिद्ध है। भगवती आराधना और यशस्तिलकादि ग्रन्थों में इन्हींका उल्लेख
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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