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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र होती है । इस लक्षणसं साधारण उपवास भी प्रोषधोपवास हो जाते हैं; और ऐसी हालतमें इस पद्यकी स्थिति और भी ज्यादा गड़बड़में पड़ जाती है । दूसरे, यदि यह मान भी लिया जाय कि, प्रोषधपूर्वक उपवासका नाम ही प्रोषधोपवास है और वही इस पद्यके द्वारा अभिहित है तो वह स्वामी समन्तभद्रके उस पूर्वकथनके विरुद्ध पड़ता है जिसके द्वारा पर्व दिनोंमें उपवासका नाम प्रोषधोपवास सूचित किया गया है और इस तरह पर प्रोषधोपवासकी 'प्रोषधे पर्वदिने उपवासः प्रोषधोपवासः' यह निरुक्ति की गई है । प्रोपध शब्द 'पर्वपर्यायवाची' है और प्रोपधोपवासका अर्थ 'प्रोषधे उपवासः' है, यह बात श्रीपूज्यपाद, अकलंकदेव, विद्यानन्द, सोमदेव आदि सभी प्रसिद्ध विद्वानोंके ग्रन्थास पाई जाती है, जिसके दो एक उदाहरण नीचे दिये जाते हैं___ "प्रोषधशब्दः पर्वपर्यायवाची । शब्दादिग्रहणं प्रतिनिवृत्तौत्सुक्यानि पंचापीन्द्रियाण्युपेत्य तस्मिन्वसंतीत्युपवासः । चतुर्विधाहारपरित्याग इत्यर्थः । प्रोषधे उपवासः प्रोषधोपवासः ।" -सर्वार्थ सिद्धि : "प्रोषधशब्दः पवंपर्यायवाची, प्रोषधे उपवासः प्रोषधोपवासः । इत्यादि -तत्त्वार्थराजवार्तिक "प्रोषधे पर्वण्युपवासः प्रोषधोपवासः।" -श्लोकवार्तिक “परिण प्रोषधान्याहुर्मासे चत्वारि तानि च” इत्यादि -यशस्तिलक "प्रोषधः पर्वपर्यायवाची । पर्वणि चतुर्विधाहारनिवृत्तिः प्रोषधोपवासः" ____-चारित्रसार "इह प्रोषधशब्दः रूढ्या पर्वसु वर्तते । पर्वाणि चाष्टम्यादितिथयः पूरणात्पर्वधर्मोपचयहेतुत्वादिति'-- -श्रा०प्र० टीकायां, हरिभद्र: बहुत कुछ छानबीन करने पर भी दूसरा ऐसा कोई भी ग्रन्थ मेरे देखने में नहीं आया जिसमें प्रोषधका अर्थ 'सकृद्भुक्ति' और
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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