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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र वश्यकता रत्नकरण्डश्रावकाचार' से कुल ८६ श्लोक उद्धत किये गये हैं । अतः नाग साहवकी यह द्वितीयावृत्ति उसीके अनुकूल है अथवा उसीके आधार पर प्रकाशित की गई है, ऐसा नहीं कहा जा सकता । मालूम होता है कि उन्होंने इस प्रकारकी बातोंद्वारा * पब्लिकके सामने असल बात पर कुछ पर्दा डालना चाहा है । और वह असल बात यह है कि, आपकी समझमें यह ग्रन्थ एक 'शतक' ग्रन्थ मालूम होता है और इसलिये आप इसमें १०८ श्लोक मूलके और बाकी सब क्षेपक समझते हैं। इसी बातको आपने अपने चैत्र शुक्ल ४ शक संवत १८४४ के पत्रमें मुझपर इस प्रकार प्रकट भी किया था ....यह शतक है, और ५० 1 श्लोक क्षेपक है, १०८ श्लोक लक्षण के हैं।" परंतु यह सब आपकी केवल कल्पना ही कल्पना थी। इसीसे इसके समर्थनमें कोई भी प्रमाण उपस्थित नहीं किया गया, जिसका यहाँ पर उहापोह किया जाता । हाँ, एक बार प्रथमावृत्ति के अवसर पर, उसकी प्रस्तावनामें, आपने ग्रंथसे निकाले हुए २८ पद्योंके सम्बंधमें यह प्रकट किया था कि, वे पद्य ग्रंथकी कर्णाटक वगैरह प्रतिमें उक्तंच' रूपसे दिये हुए हैं अतः, समंतभद्राचार्यके न होकर दूसरे प्राचार्यके होनेसे, हमने उन्हें इस पुस्तक में ग्रहण नहीं किया । प्रस्तावनाके वे शब्द इस प्रकार हैं एक दो बातें और भी ऐसी ही हैं जिन्हें लेख बढ़ जानेके भयादिमें यहां छोडा गया है। । यद्यपि उक्त द्वितीयावृत्तिमें ५० की जगह ४६ श्लोक ही निकाले गये हैं और १०१ छापे गये हैं परन्तु प्रस्तावनामें १०० श्लोकोंके छापने की ही सूचना की गई है । इससे संभव है कि अन्तका ‘पापमराति वाला पद्य गलतीसे कम्पोज होकर छप गया हो और, सब पद्यों पर एक क्रमसे नम्बर न होनेके कारण, उसका कुछ खयाल न रहा हो।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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