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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र ( १५८ पदों वाली ) प्रतिमें भी कोई क्षेपक जरूर शामिल है। ग्रन्थके किसी भी पटाका 'क्षेपक' बतलानेसे पहले इस बातकी जाँचकी बड़ी जरूरत है कि उक्त पद्यकी अनुपस्थितिसे ग्रन्थके प्रतिपाद्य विषय-सम्बन्धादिकमें किसी प्रकारकी बाधा न आते हुए भी, नीचे लिग्ब कारणोंमसे कोई कारण उपलब्ध है या कि नहीं १. दृमरे अमुक विद्वान, प्राचार्य अथवा ग्रन्थका वह पद्य है और ग्रन्थ में उक्तं च' आदि रूपसे नहीं पाया जाता। २. ग्रन्थकर्ताक दूसरे ग्रन्थ या उसी ग्रन्थके अमुक पद्य अथवा वाक्यके साथ वह विरुद्ध पड़ता है। ३. ग्रन्थक विषय, संदर्भ, कथनक्रम अथवा प्रकरणके साथ वह असम्बद्ध है। ५. ग्रन्थकी दूसरी अमुक प्राचीन. शुद्ध और असंदिग्ध प्रतिमें वह नहीं पाया जाता। ५. ग्रन्थक साहित्यसे उसके साहित्यका कोई मेल नहीं खाता, ग्रन्थकी कथनशैली उसके अस्तित्वको नहीं चाहती अथवा ग्रन्थकर्ताके द्वारा एम कथनकी सम्भावना ही नहीं है । जब तक इन कारणों से कोई भी कारण उपलब्ध न हो और जब तक यह न बतलाया जाय कि उस पद्यकी अनुपस्थिति से ग्रन्थके प्रतिपाद्य विषयसम्बन्धादिकमें कोई प्रकारकी बाधा नहीं आती तव नक किमी पद्यको क्षेपक कहनेका साहस करना दुःसाहस मात्र होगा। पं. पन्नालालजी बाकलीवालने जिन पद्योंको क्षेपक बतलाया है अथवा जिन पर क्षेपक होनेका संदेह किया है उनमेंसे किसी भी पद्य के सम्बन्धमें उन्होंने यह प्रकट नहीं किया कि वह दूसरे अमुक प्राचार्य. विद्वान अथवा ग्रन्थका पद्य है, या उसका कथन स्वामि समन्तभद्रप्रणीत उसी या दूसरे ग्रन्थके अमुक पद्य अथवा वाक्यके विरुद्ध है: न यही सूचित किया कि रत्नकरण्डकी दूसरी
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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