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________________ समीचीन-शर्मशास्त्र कुछ बतलाया नहीं। तीसरे 'यदि पाप' पद्यका ग्रन्थके विषयसे सम्बन्ध नहीं मिलता । 'श्वापि देवो' 'भयाशा' और 'यदनिष्ट' नामके पद्योंका सम्बन्ध, अन्वय तथा अर्थ ठीक नहीं बैठता। 'श्रीषेण', 'देवाधिदेव' और 'अर्हच्चरण' ये पद्य ग्रन्थके स्थलसे सम्बन्ध नहीं रखते। पंद्रहवें 'निःश्रेयस' से बीसवें पूजार्थी' तकके ६ पद्योंका अन्वयार्थ तथा विपय-सम्बन्ध ठीक-ठीक प्रतिभासित नहीं होता और ११वाँ 'व्यापार' नामका पद्य 'अनभिज्ञ क्षेपक' है-अर्थात् यह पद्य मूर्खता अथवा नासमझीमे ग्रन्थमें प्रविष्ट किया गया है । क्योंकि 'प्रथम तो इसका अन्वय ही ठीक नहीं बैठता; दूसरे अगले श्लोकमें अन्यान्य ग्रन्थोंकी तरह, प्रतिदिन सामायिकका उपदेश है और इस श्लोकमें केवल उपवास अथवा एकासनेके दिन ही सामायिक करनेका उपदेश है, इससे पूर्वापरविरोध आता है। इस पद्यके सम्बन्ध जोरके माथ यह वाक्य भी कहा गया है कि "श्रीमत्समंतभद्रस्वामीके एस वचन कदापि नहीं हो सकते,” और इस पद्यका अन्वय तथा अर्थ भी नहीं दिया गया । अन्तिम पद्यको भी शायद ऐसा ही भारी क्षेपक समझा है और इसीसे उसका भी अन्वयार्थ नहीं दिया गया। शेष पद्योंके सम्बन्धमें सिर्फ इतना ही प्रकट किया है कि वे 'क्षेपक' मालूम होते अथवा बोध होते हैं। उनके क्षेपकत्वका कोई हेतु नहीं दिया। हाँ, भूमिकामें इतना ज़रूर सूचित किया है कि "शेष के श्लोकोंका हेतु विस्तृत होनेके कारण प्रकाशित नहीं किया गया सो पत्रद्वारा या साक्षात् होने पर प्रकट हो सकता है।" इस तरह पर बाकलीवालजीके तात्कालिक सन्देहका यह रूप है। उनकी इस कृतिसे कुछ लोगोंके सन्देहको पुष्टि मिली और कितने ही हृदयोंमें नवीन सन्देहका संचार हुआ। यद्यपि, इस प्रन्यके सम्बन्धमें अभीतक कोई प्राचीन उल्लेख अथवा पुष्ट प्रमाण ऐसा देखनेमें नहीं आया जिससे यह
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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