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________________ छठा अध्ययन सल्लेखना-लक्षण उपसर्गे दुर्भिक्ष जरसि रुजायां च निःप्रतीकारे । धर्माय तनु-विमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः ॥१॥१२२॥ 'प्रतीकार ( उपाय-उपचार )-रहित असाध्यदशाको प्राप्त हुए उपसर्ग, दुर्भिक्ष, जरा ( बुढ़ापा ) तथा रोगकी हालतोंमें और (चकारसे) ऐसे ही दूसरे किसी कारणके उपस्थित होने पर जो धर्मार्थ-अपने रत्नत्रयरूप धर्मकी रक्षा-पालनाके लिये-देहका संत्याग है-विधिपूर्वक शरीरका छोड़ना है-उसे आर्य-गणधरदेव-- 'सल्लेखना'-समाधिमरण-कहते हैं।' व्याख्या-जिस देहत्याग ('तनुविमोचन') को यहाँ सल्लेखना कहा गया है उसीको अगलीकारिकामें 'अन्तक्रिया' तथा 'समाधिमरण' के नामसे भी उल्लेखित किया है । मरणका 'समाधि' विशेषण होनेसे वह उस मरणसे भिन्न हो जाता है जो साधारण तौर पर आयुका अन्त आने पर प्रायः सभी संसारी जीवोंके साथ घटित होता है अथवा आयुका अन्त न आने पर भी क्रोधादिकके आवेशमें या मोहसे पागल होकर 'अपघात' (खुदकुशी, Suicide) के रूपमें प्रस्तुत किया जाता है,और जिसमें आत्माकी कोई सावधानी एवं स्वरूप-स्थिति नहीं रहती । समाधि-पूर्वक मरणमें आत्माकी प्रायः पूरी सावधानी रहती है और मोह तथा क्रोधादि* अण्णं पि चापि एदारिसम्मि अगाढकारणे जादे । -~-~~भगवती आराधना
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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