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________________ कारिका १०६-७] प्रोषधोपवास-लक्षण १४३ 'चतुर्दशी और अष्टमीके दिन चार अभ्यवहार्योंका-अन्न, पान (पेय), खाद्य और लेह्यरूपसे चार प्रकारके आहारोंका-जो सत् इच्छाओंसे ---शुभ संकल्पोंके साथ-त्याग है-उनका सेवन न करना है-उसको 'प्रोषधोपवास' व्रत जानना चाहिये। व्याख्या-'पर्वणी' शब्द यद्यपि आमतौर पर पूर्णिमाका वाचक है परन्तु वह यहाँ चतुदशीके अर्थमें प्रयुक्त हुआ है; क्योंकि जैनाम्नायकी दृष्टि से प्रत्येक मासमें दो अष्टमी और दो चतुर्दशी ऐसे चार दिन आमतौर पर पर्व के माने जाते हैं; जैसा कि आगे प्रोषधोपवास नामक श्रावकपद (प्रतिमा ) के लक्षणमें प्रयुक्त हुए 'पर्वदिनेषु चतुर्वपि मासे मासे' इन पदोंसे भी जाना जाता है । पर्वगीको पूणिमा माननेपर पर्व दिन तीन ही रह जाते हैं--दो अष्टमी और एक पूणिमा । यहाँ 'पर्वणी' शब्दस अष्टमीकी तरह दोनों पक्षोंकी दो चतुर्दशी विवक्षिन हैं । प्रभाचन्द्राचायने भी अपनी टीकामें 'पर्वणि' पदका अर्थ 'चतुर्दश्यां' दिया है । 'चतुरभ्यवहार्याणां पदका जो अर्थ अन्न, पान, खाद्य, और लेह्य किया गया है वह छठे श्रावकपदके लक्षणमें प्रयुक्त हुए 'अन्नं पानं खाद्यं लेह्य नाश्नानाति यो विभावर्याम्' इस वाक्य पर आधार रखता है। यहाँ इस व्रतके लक्षणमें एक बात खास तौरसे ध्यानमें रखने याग्य है और वह है “सदिच्छाभिः' पदका प्रयोग, जो इस बातको सूचित करता है कि यह उपवास शुभेच्छाओं अथवा सत्संकल्पोंको लेकर किया जाना चाहिये-किसी बुरी भावना, लोकदिखावा अथवा दम्भादिकके असदुद्देश्यको लेकर नहीं, जिसमें किसी पर अनुचित दबाव डालना भी शामिल है। उपवासके दिन त्याज्य कर्म पंचानां पपानामलंक्रियाऽऽरम्भ-गन्ध-पुष्पाणाम् । स्नानाऽञ्जन-नस्यानामुपवासे परिहतिं कुर्यात् ॥१७॥१०७
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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