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________________ कारिका ६०] भोगोपभोगपरिमा के अतिचार १२६ ___ व्याख्या-यहाँ भोग तथा उपभोगमें आनेवाली सामग्रीका अच्छा वर्गीकरण किया गया है और साथ ही कालकी मर्यादाओं का भी सुन्दर निर्देश है। इन दोनोंसे व्रतको व्यवस्थित करने में बड़ी सुविधा हो जाती है। इस व्रतका व्रती अपनी सुविधा एवं श्रावश्यकताके अनुसार भोगोपभोगके पदार्थोंका और भी विशेष वर्गोकग्रा तथा कालकी मर्यादाका घड़ी-घंटा आदिके रूपमें निर्धारण कर सकता है । यहाँ व्यापकदृष्टिसे स्थूल रूपमें भोगोपभोगके विषयभूत पदार्थोंका वर्गीकरण तथा उनके सेवनकी कालमर्यादाओंका संसूचन किया गया है। भोगोपभोग परिमागवतके अतिचार विषयविषतोऽनुपेक्षाऽनुस्मृतिरतिलौल्यमतितृषानुभवौ । भोगोपभोगपरिमा-व्यतिक्रमाः पंच कथ्यन्ते ॥ १० ॥ इति श्रीस्वामिसमन्तभद्राचार्य-विरचिते समीचीन-धर्मशास्त्रे रत्नकरण्डाऽपरनाम्नि उपासकाऽध्ययने-गुणव्रत वर्णनं नाम चतुथमध्ययनम् ॥४॥ 'विषयरूपी विषसे उपेक्षाका न होना-इन्द्रिय-विषयोंको सेवन कर लेने पर भी आलिंगनादि-रूपसे उनमें आसक्तिका भाव बना रहनाअनुस्मृति-भोगे हुए विषयोंका वार-वार स्मरण करना-, अतिलौल्यवर्तमानविषयोंमें अतिलालसा रखना----,अतितृपा-भावी भोगोंकी अतिगृद्धताके साथ आकांक्षा करना-,अत्यनुभव-नियतकालिक भोगोपभोगोंको भोगते हुए भी अत्यासक्तिसे भागना; ये भोगोपभोगपरिमाणव्रतके पाँचअतिचार कहे जाते हैं।' व्याख्या—यहाँ भोगोपभोग परिमाणव्रतके जो पाँच अतिचार दिये गये हैं व उन अतिचारोंस सर्वथा भिन्न हैं जो तत्त्वार्थसूत्र
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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