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________________ कारिका ८५] दूसरे त्याज्य पदार्थ १२५ __ दूसरे त्याज्य पदार्थ अल्पफल-बहुबिधातान्मूलकमार्द्राणि शृङ्गचेराणि । नवनीत-निम्ब-कुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ॥१६॥८५॥ __ 'अल्पफल और बहु विघातके कारण (अप्रासुक) मूलकमूली आदिक-तथा आर्द्रशृङ्गवेर अादि-चित्त अथवा अप्रासुक अदरकादिक, नवनीत--( मर्यादासे बाहरका ) मक्खन, नीमके फूल, केतकीके फूल, ये सब और इसी प्रकारकी दूसरी वस्तुएँ भी ( जिनेन्द्रदेवके उपासकोंके लिये) त्याज्य है--अर्थात् श्रावकोंको भोगोपभोगकी ऐसी सब वस्तुओंका त्याग ही कर देना चाहिये-परिमाग करनेकी ज़रूरत नहीं-जिनके सेवनसे जिह्वाकी तृप्ति आदि लौकिक लाभ तो बहुत कम मिलता है किन्तु त्रस और स्थावर जीवोंका बहुत घात होनेसे पापसंचय अधिक होकर परलोक बिगड़ जाता है और दुःखपरम्पग बढ़ जाती है। - व्याख्या-यहाँ 'मूलकं पद मूलमात्रका द्योतक है और उसमें मूली-गाजर-शलजमादिक तथा दूसरी वनस्पतियोंकी जड़ें भी शामिल हैं। 'शङ्गवेराणि पदमें अद्रकके सिवा हरिद्रा ( हल्दी), सराल, शकरकन्द,जमीकन्दादिक वे दूसरे कन्द भी शामिल हैं जो अपने अंगपर शङ्गकी तरहका कुछ उभार लिये हुए होते हैं और उपलक्षणसे उसमें ऐसे कन्दोंका भी ग्रहण या जाता है जो शृङ्गकी तरहका कोई उभार अपने अंगपर लिये हुए न हों, किन्तु अनन्तकाय-अनन्त जीवोंके आश्रयभूत हों । इस पद तथा 'मूलक' पदके मध्यमें प्रयुक्त हुआ 'आर्द्राणि' पद यहाँ अपना खास महत्व रखता है और अपने अस्तित्वसे दोनों ही पदोंको अनुप्राणित करता है । इसका अर्थ आमतौर पर गीले, हरे, रसभरे, अशुष्क-रूपमें लिया जाता है; परन्तु म्पष्टाथ की दृष्टि से वह यहाँ सचित्त (Living) तथा अप्रासुक अर्थका वाचक है । टीकामें प्रभा
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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