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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०३ व्रतभेदरूप गृहस्थचारित्र गृहिणां त्रेधा तिष्ठत्यणु-गुण-शिक्षा-व्रतात्मकं चरणम् । पंच-त्रि-चतुर्भेदं त्रयं यथासंख्यमाख्यातम् ॥५॥५१॥ ___गृहस्थोंका (विकल) चारित्र अणुव्रत-गुणव्रत-शिक्षाव्रतरूपसे तीन प्रकारका होता है । और वह व्रतत्रयात्मक चारित्र क्रमशः पांच-तीन-चार भेदोंको लिये हुए कहा गया है-अर्थात् अगुव्रतके पांच, गुणवतके तीन और शिक्षाव्रतके चार भेद होते हैं ।' ___व्याख्या-यहाँ गृहस्थोंके विकल-चारित्रके अंगरूपमें जिन पांच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतोंकी सूचना की गई है उनमें अणुव्रत चारित्रकी उत्पत्तिके अंगरूपमें गुणव्रत चारित्रकी वृद्धिके अंगरूपमें और शिक्षाबत चारित्रकी रक्षाके अंगरूपमें स्थित है। आगे ग्रन्थकारमहोदय विकल चारित्रके इन भेदों तथा उपभेदोंका क्रमशः लक्षण-पुरस्सर वर्णन करते हैं। अराणुव्रत-लक्षण प्राणातिपात-वितथव्याहार-स्तेय-काम-मूर्छाभ्यः । स्थूलेभ्यः पापेभ्यः व्युपरमणमणुव्रतं भवति ॥६॥५२॥ 'स्थूलप्राणातिपात-मोटे रूपमें प्राणोंके घातरूप स्थूलहिंसा-, स्थूलवितथव्याहार-मोटे रूपमें अन्यथा कथनरूप स्थूल असत्य-~, स्थूलस्तेय-मोटे रूपमें परधन हरणादिरूप स्थूलचौर्य(चोरी)-, स्थूलकाम-मोटे रूपमें मैथुन सेवारूप स्थूल-अब्रह्म-पोर स्थूलमूर्छामोटे रूपमें ममत्वपरिणामरूप स्थूल-परिग्रह-; इन (पांच) पापोंसे जो विरक्त होना है उसका नाम 'अणुव्रत' है।' । 'मूछेन्यः' इति पाठान्तरम् ।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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