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________________ . २८ समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०१ जिनशासन : हे जैनमार्ग है, अथवा वास्तविक सुखमार्ग है, और इस लिये मिथ्यादर्शनादिकको कुमार्ग, मिथ्यामार्ग, कापथ तथा दुःखमार्ग समझना चाहिये । ग्रन्थकी १४वीं कारिकामें इसके लिए 'कापथ' शब्दका स्पष्ट प्रयोग है और उसे 'दुःखानां पथि लिखकर 'दुःखमार्ग' भी बतलाया गया है। ६ वी कारिकामें भी 'कापथघट्टन' पढ़के द्वारा इसी कुमार्गका निर्देश और आगममें उसके खण्डन-विधानका प्ररूपण है। ___ यही सम्यग्दर्शनादिरूप वह धर्म है जिसे ग्रन्थकी द्वितीय कारिकामें 'कर्मनिवर्हण' बतलाया है और जो स्वयम्भूस्तोत्रक्री कारिका ८४ के अनुसार वह सातिशय अग्नि है जिसके द्वारा कर्म-प्रकृतियोंको भस्म करके उनका आत्मासे सम्बन्ध विच्छेद करते हुए आत्मशक्तियोंको विकसित किया जाता है। और इस लिये जिसके विषयमें उक्त कारिकाकी व्याख्याके समय जो यह बतलाया जा चुका है कि 'वह वस्तुतः कर्मबन्धका कारण नहीं' वह ठीक ही है; क्योंकि चार प्रकारके बन्धनोंमेंसे प्रकृतिबन्ध तथा प्रदेशबन्ध योगसे और स्थितिबन्ध तथा अनुभागबन्ध कषायसे होते हैं* सम्यग्दर्शनादिक न योगरूप हैं और न कषायरूपः हैं तब इनसे बन्ध कैसे हो सकता है ? x इस पर यह शंका की जा - 'जिनशासन' नामसे इम मार्गका उल्लेख ग्रन्थको कारिका १८ तथा ७८ में आया है। * 'हुत्वा स्वकर्म-कटुकप्रकृतीश्चतस्रो,रत्नत्रयाऽतिशयतेजसि जातवीर्यः । बभ्राजिषे सकल-वेद-विधैविनेता,व्यभ्रं यथा वियति दीप्त-रुचि विवस्वान् । * जोगा पयडि-पदेसा ठिदि-अणुभागा कसायदो होति ।--द्रव्यसंग्रह ३३ x योगात्प्रदेशबन्ध: स्थितिबन्धो भवति यः कषायात्तु । दर्शन-बोध-चरित्रं न योगरूपं कषायरूपं च ।। २१५ ॥ दर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः । स्थितिरात्मनि चारित्रं कुत एतेभ्यो भवति बन्धः॥२१६॥-पुरुषार्थसि०
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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