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________________ कारिका १] मंगलाचरण साथ यह 'वर्द्धमान' नाम भी आपका जन्मनाम हैx। 'श्री' शब्द नामका अङ्ग न होकर साथमें विशेषण है, जो उनको श्रीमत्ता अथवा श्रीविशिष्टताको सूचित करता है। और इसलिये 'श्रीवद्धमानाय' पदका विग्रहरूप अर्थ हुआ 'श्रीमते वर्द्धमानाय' श्रीमान (श्रीसम्पन्न) वर्द्धमानके लिये । स्वयं ग्रन्थकारमहोदयने अपनी स्तुति-विद्या (जिनशतक ) में भी इस पदको इसी प्रकारसे विश्लेषित करके रक्खा है; जैसा कि उसके निम्न वाक्यसे प्रकट है-- ___ "श्रीमते वर्द्धमानाय नमो नमित-विद्विषे” ॥१०२॥ __इससे स्पष्ट है कि ग्रन्थकारमहोदयको 'वर्द्धमान' नाम ही अभीष्ट है- 'श्रीवर्द्धमान' नहीं । ग्रन्थकारसे पूर्ववर्ती आचार्य श्रीकुन्दकुन्दने भी अपने प्रवचनसारकी आदिमें पणमामि बढ्माणं वाक्यके द्वारा 'वर्द्धमान' नामकी सूचना की है। अतः 'श्री' पद यहां विशेषण ही है। 'श्री' शब्द लक्ष्मी, धनादि सम्पत्ति, विभूति, वाग्देवीसरस्वती-वाणी-भारती शोभा, प्रभा, उच्चस्थिति, महानता, दिव्यमाइएणं संत-सारसावइज्जेणं पीइ-सक्कारेणं अईव अईव वढ्ढामो, तं जयारणं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तयाणं अम्हे एयस्स दारगस्स एयागुरूवं गुण्णं गुणनिप्पणं नामधिज्ज करिस्सामो-वह्नमाणु त्ति ।।६०॥" -कल्पसूत्र x अलं तदिति तं भक्त्या विभूष्योद्यद्विभूषणः । वीरः श्रीवर्द्धमानस्तेष्वित्याख्या-द्वितयं व्यधात् ॥२७६।। -उत्तरपुराण, पर्व ७४ + श्रीलक्ष्मी-भारती-शोभा-प्रभासु सरलद्रुमे । __ वेश-त्रिवर्ग-सम्पत्तौ शेषापकरणे मतौ ॥ (द्वितीय अंश अगले पृष्ठपर) -विश्वलोचने, श्रीधरः
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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