SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सभाष्य-धर्मशास्त्रकी विषय-सूची विषय पृष्ठ विषय पृष्ठ सभी ज्ञेय पदार्थोंका युगपत् । प्रथम अध्ययन प्रतिभासन अबाध्य १२ भाष्यका मंगलाचरण मंगलाचरणकी और उसे ग्रन्थमूलका मंगलाचरण ___ में निबद्ध करनेकी दृष्टि १३ 'श्री' विशेषणका स्पष्टीकरण ३ धर्मदेशनाकी प्रतिज्ञा और वर्धमानका प्राप्तके तीनों विशे धर्मके विशेषण १४ षणोंके साथ स्मरण ५ 'कर्मनिवर्हण' विशेषणकी दृष्टि 'निर्धूत-कलिलात्मने' पदकी । और उसकी प्रतिष्ठापर तृतीय तुलना और प्रयोगकी खूबी ५ विशेषणकी चरितार्थता १५ लोक-अलोक-त्रिलोकका स्वरूप; | उत्तमसुखकी परिभाषा, इन्द्रियलोक-अलोकमें संपूर्ण ज्ञेय सुखकी सदोषता १६ तत्त्वकी परिसमाप्ति ६ ‘सत्वान्'पद-प्रयोगका महत्वादि १८ आत्माके ज्ञान-प्रमाण और ज्ञान 'समीचीन' विशेषणका रहस्योके ज्ञेय-प्रमाण एवं सर्वगत द्घाटन ___... २० होनेका स्पष्टीकरण ग्रन्थके 'समीचीनधर्मशास्त्र और शुद्धात्मा सर्वज्ञके सवंगतत्त्वका 'रत्नकरण्ड' नामोंका विशरहस्योद्घाटन ... ८ दीकरण .... २४ ज्ञानके दर्पण-सम होनेपर उसमें अलोक-सहित त्रिलोकका धर्म-लक्षण (रत्नत्रयरूप) २५ सत्, दृष्टि, ज्ञान, वृत्त आदिके युगपत् प्रतिभासन कैसे ? पर्याय-नामोंका अनुसंधान २५ लौकिक-दर्पणों तथा क्षायोपश- विपक्षभत मिथ्यादर्शनादिक अमिक ज्ञान-दर्पणोंकी कुछ । धर्म हैं और संसारके मार्ग विशेषताएँ .... ११ हैं। फलतः सम्यग्दर्शनादिधर्म सर्वातिशायी केवलज्ञान-दर्पणमें । मोक्षके मार्ग हैं ... २६
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy