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________________ (८६) मार्यमतलीला ॥ रसके रूपको भने हुए अन मथन का, यजुर्वेद २१ वां अध्याय .४१ साधन सत्तू सब भारसे वीजका बोना "हे (होतः ) देने हारे तसे (होता)। दृधदही दहीदूध मीठे का मिलाया हुआ और देने हारा अनेक प्रकार के व्यवप्रशस्त मनों को सम्बन्धी मार बस्तहारोंकी संगति करे पश पालने वा खेती और शहत के गुण को जानो।" करने वाले (बागस्य) बकरा गौ भैंस यजर्वेद १९ वा अध्याय ऋ० २२ आदि पश संबन्धी धा ( वपापाः ) "हे मनुष्यो तुम लोग भंजे हुए जौमा- | बीज बोने वा सत के कपड़े आदि बदि प्रमोंका कोमल बेर सा रूप पिसा माने और ( मेदसः ) चिकने पदार्थ के न प्रादि का गेहूं रूप सतुओं का बेर लेने देने योग्य व्यवहार का (जषेताम्)। फनके समान रूप दही मिले सत्तू का सेवन करें वैसे ( पत्र ) च्यवहारों की ममीप प्राप्त जो सूप है ऐसा जाना संगति कर । हे देने हारे जन तू जैसे करो।" ( होता ) लेने हारा भेढ़ाके (वपामाः)| यजुर्वेद १९ वा अध्याय ऋ. २३ बीज को बढ़ाने बानी क्रिया और "हे मनष्यो तुम लोग जो यव हैं उन को पानी वा दूध के रूप मोटे पके | म चिकने पदार्थसंबंधी अमिमादिछोड़ने हुये बेरी के फलोंके समान दही के योग्य संस्कार किये हुए अन्न श्रादि पस्वरूप बहुत अन्न के सार के समान दार्थ और विशेष जान वाली वाणीका (जषतां) सेवन करे वा उक्त पदार्थों का सोम औषधि के स्वरूप और दूध दही | यथायोग्य मेल करे वैसे सव पदार्थोंका के संयोगसे बने पदार्थके समान सोमा | यथायोग्य मेल कर । हे देने हारे त ! दि औषधियोंके सार होने के स्वरूप जैसे लेने द्वारा बैल को ( वपायाः ) - को सिद्ध किया करें।" ढाने बाली रीति और चिकने पदार्च यजर्वेद बीसवां अध्याय ऋ० ८ संबन्धी ( हधिः ) देने योग्य पदार्थ "हे विद्वान् ! घोड़े और उत्तम बैल तथा| । और परम ऐश्वर्य करने वाले का सेवन अतिबली वीर्यके सेवन करने हारे करे या यथायोग्य उक्त पदार्णका मेन बैल बंध्यागायें और मेढ़ा अच्छे प्रका-करे वैसे ( यज) यथायोग्य पदायाँको 'र शिक्षा पाये और सब ओर से ग्रहण मेल कर... किये हए जिस व्यबहार में काम कर- यजद २३ वा अध्याय ०१३ ने हारे हों उस में सू अन्तःकरण से | हे विद्यार्थी जम ! अच्छे प्रकार पा. सोम विद्या को पूछने और उत्तम मन कोंसे धूल कार्यप पवन काटने की के रस को पीने हारे बुद्धिमान अनि क्रियाओं से काली चोटियों वाला प्र. के समान प्रकाश मान जन के लिये | मि और मेघोंसे घट पक्ष उन्नतिके सात | अति उत्तम बुद्धि को प्रगट कर।" | सैर पर तुझको पाले--
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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