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प्रार्यमसलीला।
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स्वोग मी देश में भाकर बसे इस | की भादि में कुछ कालके पश्चात् तिलिये हम सृष्टि विषयमें कह पाये | व्वतसे सूधेसी देशमें आकर बसे घे-- हैं कि भार्य नाम उत्तम पुरुषोंका है जो आर्यावर्त देशमे भिन्न देश हैं वे
और प्रार्थों से भित्र मनुष्यों का नाम दस्यु देश और म्लेच्छ देश कहाते हैं।" दम्यु है जितने भूगोलमें देश हैं व हम खामीजीके चेलोंसे पूछते हैं कि सब इसी देश की प्रशंसा करते और
| पायर्यावर्त देशको ईश्वरने मन्त्र देशों प्राशा रखते हैं। पारस मणि पत्थर मे उत्तम बनाया परन्तु उम को सुना जाता है वह बात तो झूठ है | खानी छोड़ दिया और मनुष्यों को तिपरन्त आर्यावर्त देश ही सच्चा पा- | अब देश में उत्पन्न किया क्या यह अरस मणि है कि जिमको लोहे रुप
संगत बात नहीं है ? जब यह श्रादरिद्र विदेशी छूतेके माथ ही सुवर्ण
यावर्त देश मबसे उत्तम देश बनाया अर्थात् धनाढय हो जाते हैं."
था तो इसही में मनष्योंकी उत्पत्ति स्वामीजीने यह तो मब ठीक लिखा।
करता-म्वामीजीने जी यह लिखा है यह हिंदुस्तान देश ऐमा ही प्रशंस
कि मनप्यों को प्रथम तिब्बत देश में नीय है परन्तु प्राश्चर्यकी बात है कि
उत्पन्न किया उसका कारण यह मास्वामी जी अष्टम समुल्लासमें इम प्रकार लिखते हैं-" मनुष्यों को भादि
लूम होता है कि सर्कारी स्कूलों में जो
इतिहास की पुस्तक पढ़ाई जाती हैं में तिठबत देश में ही ईश्वरने पैदा किये-"
उनमें अंगरेज विद्वानोंने ऐमा लिखा '' पहल एक मनष्य जाति थी पश्चात्
था कि इस आर्यावर्त देशसे उत्तरकी अष्ठोंका नाम सायं और दुष्टोंका दस्यु नाम होनेसे आर्य और दस्यु दो नाम तरफ जो देश था वहांके रहने वाले हुए जब आर्य और दस्युनों में मदा लोग अन्य देशोंके मनष्यों की अपेक्षा लड़ाई बखेड़ा हुआ किया, जब बहुत
कछ बडिमान् हो गये थे पश समान उपद्रव होने लगा तब आर्य लोग मब वहशी नहीं रहते थे वरन प्राग जभूगोलमें उत्तम इस भूमिके स्वराड को | लामा अन्न पकाकर खाना और खेती जानकर यहीं आकर बसे इसीसे इस | करना सीख गये थे वह कह तो हिन्ददेशका नाम “प्रार्या बर्त” हुआ इसके स्तानमें आकर बसे और कुछ अन्य
पूर्व इस देशका नाम कोई भी नहीं | देशोंको चले गये-वामीजीके चेलों के ! था और न कोई आर्योंके पूर्व इस देश | हृदयमें स्कूल की किताबों में पढ़ी हुई ; में बमते थे क्योंकि आर्य लोग मष्ठि ' यह वात पूरी तरहसे समाई हुई थी