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________________ हो। (८२) भार्यमतलीला। नो जैसे हम लोग बाणियोंसे इस ( सो-1 बीर पुरुषों के सहित सोमका पान मस्य) ओषधियोंसे उत्पन्न हुए रसके | कीजिये। पागके लिये श्राप दोनोंका स्वीकार क-1 श्राग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ५३ मा ४-६ रते हैं वैसे इस के उत्पन्न होने पर हम .जब कब हम लोग सामलाता के रस लोगोंका स्वीकार करो-, | संचित करें उसको पाप शत्रुओंके संताप "हे राजा और मन्त्री जनो ! श्राप | देने वाले बिजुली के समान प्राप्त | दोनों दाता जनके स्थानमें (सोमम् ) प्रति उत्तम रसपा पान करो और हम | सोमका पान करिये और पीकर लोगोंको निरन्तर ( माइयेथाम् ) श्रा-1: गन्द देमो ।" |श्रेष्ठ संग्राम जिससे उसको प्राप्त हो होइये। सोम पीकर युद्ध में जानेकी ऋग्वंद चौथा मंडल सूक्त १० ऋ०३ प्रेरणा इस प्रकार की गई है. जैसे मेना का ईश प्रकाश के स्थान ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १७१ ऋ०३ / में "सोमको सेनामोंके मध्य में पीता है। “हे-बलिष्ठ राजन् ! हम लोगों को ऋग्वेद चीथा मंडल सूक्त ४५ ऋ० ३-५ प्राप्त होते और रस प्रादिसे परिपूर्ण हे सेना के ईश'मधर रसों को पीने होते हुए भाप जो अपने लिये सोम | वाले बीर पुरुषों के साथ मपुर मारि रस उत्पन्न किया गया है उसमें मोठे गम ने यक्त पदार्थ के मनोहर रमको मीठे पदार्थ सब ओरसे साँचे हुए हैं| पिमोजा मघर प्रादि गुण युक्त मोम उस रसको पीकर मनुष्योंके प्रयल हरणशील घोड़ोंसे दृढ़ रथ को जोड़ युद्ध को उत्पन्न करता है उनको-सिद्ध करो। का यन करो वा युद्धको प्रतिक्षा पूर्ण । । ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त ४० ऋ० १ करो नीचे मार्ग से समीप मानो। हे मोमपते सोम को पान कीजिये शग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ५५ ऋ०२और संग्राम को प्राप्त हूजिये ! “जो सबाध्यत...सोम पीनेके लिये वेदों में सोम पीने का समय सुबह बैलके समान आचरण करता है वह और दोपहर वर्णन किया है भंगह भी युद्ध करने वाला पुरुष...राज्य और स-इम ही समय में भंग पीते हैं। यहास्कार करने योग्य है।" | ऋग्वेद तीसरा ममडल सूक्त ३२ ऋ०३ ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ४१ २-४ वीर पुरुषों के साथ समूह के सहित "सकल विद्याओं का जाननेवाला पुरुष बर्तमान प्राप मध्य दिन में सोम लसोमलता के रस को पीजिये और श-तादि औषधि का पान करो। अओं को देश से बाहर करके नष्ट क-1 ऋग्वेद पचम महल सूक्त ३४ शा३ रिये। हे मनुष्यो जो इस के लिये दिन में
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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