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________________ प्रार्थमसलीला || १८ ) ऋग्वेद पंचम मंडल सून ७२ ऋ० २ हे निश्चित रक्षण और यह कराते हुए जनों वाले मनुष्यो जो तुम धर्म के और धर्म युक्त कर्मके साथ वर्त्तमा न होवे सोम पीने के लिये उत्तम व्यबहार में उपस्थित हूजिये, ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त १८० ४०-५ हे परम ऐश्वर्य युक्त बुलाये हुए छाप दो हरण शील पदार्थों के साथ मान से जाइये चार हरण शील पदार्थों के साथ यान से छानो छः पदार्थों से युक्त यान से जानी जाठ वा दश पदार्थो । ८ ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ५४ सोम के पीने वाले धार्मिक विद्वान पुरुष कर्म से वृदु शत्रुओं के बल ना शकवे सब प्राप की सभा में बैठने योग्य सभासद और भृत्य होवे I | शाम फल जिम प्रकार भंग पीने वा ले मंगड़ भंग न पीने वालों की बुराई करते हैं और भंग की तरंग में गीत गाते हैं कि, वेटा होकर भंग न पीवे बेटा नहीं वह बेटी है। इस ही प्रकार वेदों में भी न पीने वाले की बुराई की गई है, बरन उस पर क्रोध किया गया है यहां तक कि उसको मारने और लूट लेने का उपदेश किया है यथा ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ११६ ० ४ हे राजन् प्राप उस पदार्थों के सार | खींचने आदि पुरुषार्थ से रहित और से बिनाशने योग्य समस्त छादुःख लखी गण को मारो दंडदेओ कि जो | विद्वान् के समान व्यवहारों को प्राप्ति करता है और तुम्हारे सुख को नहीं पहुंचता तथा आप इस के धनको इमारे अर्थ धारया करो युक्त यान से माओ जो यह उत्पन किया हुआ पदार्थों का पीने योग्य रस है उस पदार्थों के रस के पोनेके लिये भ्राम्रो । हे असंख्य ऐश्वर्य देने वाले युक्त होते हुए आप वीस और तीस हरने वाले पदार्थों से चलाये हुए मानसे जो मो थे को जाता है उस सोम आदि औषधियों में पीने योग्य रस को प्राप्त होश्रो प्राशी चालीस पदार्थों से युक्त रथ से आओ पचास इरणशील पदार्थों से युक्त सुन्दर रथों से प्राछो साठ वा सत्तर हरणशील पदार्थोंसे युक्त सुन्दर रथोंसे श्राश्रो, (इसी प्रकार आगेकी ऋचामें मट और सौ भी कहते चले गये हैं हम क हां तक लिखें ) ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त ३० ऋचा ७ ' हे मनुष्यो ! जो मुझे तृप्त करे जो मुझको सुख देवे तो मुझ को निश्चित बोध करावे जो इन्द्रियों से यज्ञ करते हुए मुझ को अच्छे प्रकार समीप प्राप्त होवे वह मुझ को सेवने योग्य है जो मुझको नहीं चाहता नहीं श्रम करता मोम की तरंग में इस प्रकार बेतुका और नहीं मोह करता इन लोग जिस गीत गाया गया है । को ऐसा नहीं कहें उस ( सोमम् ) श्री
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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