SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७६ ) छे दुइते जलादिसे पूर्ण करते मेघों से | (सोमपीतये) उत्तम प्रोषधि रस जिस में पिये जाते उसके लिये ऐश्वर्य को परिपूर्ण करते उसको हमारे समीप पहुंचाओ जो यह मनुष्यों ने सोम रस सिद्ध किया है वह तुम्हारे लिये प्रकार पीने को सिद्ध किया गया है । ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १३५ ऋ० ५ अच्छे प्रकार पर्वत के टूक वा खली मूसलों से सिद्ध किये अर्थात् कूट पीट बनाये हुये पदार्थों के रस ( मदश्य ) आनन्द के लिये तुम पीओ ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ३६ ऋ० २-६ को सेचनों से मथे हुए बढ़ाने वाले रस का पान कीजिये । प्रार्थनतलीला ॥ जो राजा श्रेष्ठ पुरुष होता हुआ सभात्रों को प्राप्त होवे इससे वह गुणों से पूर्ण औषधियों का सार भाग और (सोम) औषधियों का समूह जल को जैसे प्राप्त होवे वैसे सम्पूर्ण प्राणियों को सुख देता है । दूधिया हो जाता है उसका वर्णन इस प्रकार है । ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त २१ ऋचा ५ हे मनुष्यों जो बहुत श्रेष्ठ धन युक्त गौश्रोंसे सम्बद्ध बढ़े हुए श्वेत वर्ण बाले घड़े जल और छानको पीनेके लिये (मदाय ) श्रानन्दके लिये धारणा करता है और जो ( शूर ) भयसे रहित अत्यन्त ऐश्वर्यवाला (मदाय ) ज्ञानन्द के लिये अपने नहीं नाश होनेकी इच्छा करने वालोंके साथ मधुर आदि गुणों के प्रथम प्रयत्न से सिद्ध करने योग्य छानन्द के पीने को धारण करता है वह नहीं मह होने वाले बलको प्राप्त होता है ।" भंग में मोठा मिलाया जाता है उस का वर्णन निम्न प्रकार है और वेदोंके पढ़ने से यह भी मालूम होता है कि वेदों के समयमें शहतकी ही मिठाई थी और कोई मिठाई नहीं थी । ऋग्वेद छठा मंडल सूक्त ४४ ऋचा २१ “प्राप उत्तम सुखके वर्षाने वाले लिये पानको स्वाद से युक्त मोमलताका रस ( मधुपेयः ) शद्दत के साथ पीने योग्य हो ।,, भंग पाकर दही आदिक भोजन खाते हैं उसका वर्णन इस प्रकार हैऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ९३१ ऋचा २ " हे पढ़ने वा पढ़ाने वाले जो सुन्दर मित्रके लिये पीनेको और उत्तम जनके सफेद | लिये सत्याचरण और पीनेको प्रभात भंग में दूध मिलाया जाता है उसका भी बर्णन इस प्रकार है: पीता है। ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ५८ ऋ० ४ गौवों के दूध आदि से मिले हुए सोमलता रूप औषधियों के रसों की मित्र लोगों के सदृश देवें । ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त २३ ऋचा १ (सोम) दुग्ध आदि रसको दूध मिलाने से भंग +
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy