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________________ कार्यमसलीला ॥ के समान इस वर्त्तमान पुष्ट करने के योग्य छ आदि के विभाग कारक : संग्राम में धनों के उत्तम प्रकार जीतने वाले प्रति प्रधान संग्रामोंमें नाश करते और सुनते हुए तेजस्वी वृद्धि कर्ता अत्यंत धन से युक्त शत्रुओं के बिदारने वाले का स्वीकार वा प्रशंसा वेदों के बढ़ने से मालूम होता है कि वेदों के समय में प्रायः तीर और बज अर्थात् गुज यह दोही हथियार थे । धनुष के द्वारा तीर चलाते थे मौर गुर्ज हाथ में लेकर शत्रु को मारते थे । ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ३१ ० २२ और तोरों की आघात से बचने के हे बीर पुरुषो जैसे हम लोग रक्षा | वास्ते कबच जिसको फारसी में जरा श्रादिके लिये मेघों के अवयवों को सूर्य | बक्सर कहते हैं पहनते थे । तीर और गुजं और कवच का कथन वेदों के मेक गीतों में आया है। इन के सिवाय और किसी अन शस्त्र का नाम नहीं मिलता है । परन्तु आज कल तोप और बन्दूक जारी होगई हैं जिनके सामने तीर और बज सब हेच हो गये हैं और तोप बंदूक के गोले गोलियों के मुकाबिले में कवच से कुछ भी रक्षा नहीं हो सकती है। इसी कारण थाज कल कोई फ़ौजी सिपाही कवच नहीं पहनता है। और प्राज कल सोप और बंदूक भी नित्य नई से नई और ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ५३०१ छअसुर का अर्थ शत्रु ॥ अद्भुत बनती जाती हैं । यद्यपि वेदों में तीर, बज्र और कवच के सिवाय और किमी हथियार का वर्णन नहीं है परन्तु जिस प्रकार बेदी के गंवारू गीतों में स्वामी जी ने कहीं कहीं रेल और रेल के ऐंजिन और दुखानी ज अनेक प्रकार के रूप वा विकारयुक्त हाज़ का नाम अपने अर्थों में ज़बरदरूप वाले शत्रु 11 ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त ४० १ १५ सन्ताप देने वाले शस्त्र आदिकों से ( राक्षमः ) दुष्टों को पीड़ा देखो(राक्षसः) दुष्टा चरणों को भस्म कीजिये ( ७0 ) दस्युकानाश करिये ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ५२८ ५ मापक्ष- (दस्त्येषु ) डाकु यों के हननरूप संग्रामों में उन को नि भिन्न कर दीजिये । करे वैसे इस पुरुष का आप लोग भी ब्राह्नान कर-ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ३४० दस्यूका नाश करके प्रार्थोकी रक्षा करें ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ४० ऋ० २ शत्रुओं को दुख देनेवाले बीरों के माथ दस्यु के प्रायुः अवस्था का शीघ्र नाश करे उसको सब का स्वामी करो /* स्ती घुमेड़ दिया है, इस ही प्रकार ऋग्वेद प्रथम मंडलके सूक्त ८ की ऋचा ३ के हिन्दी अर्थ में तोप बंदूक थादिक सब कुछ प्रकाश कराया है अर्था तु इस प्रकार शिक्षा है।
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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