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________________ (€) श्रार्यमतलोला ॥ क सोते हैं ।" आर्यमत लीला ॥ ( १० ) के की भूमि चाहते और दुष्ट अधर्मी जमों | आदि में ईश्वर ने प्रकाश को मारने की इच्छा करते हुए साठवी | नहीं किये बरण जब कि दस्यु र अर्थात् शरीर और मात्मा के बल लोगोंके साथ लड़ाई हुआ और शूरता युक्त मनुष्य छः सहस्र शत्रुओं को अधिकता से जीतते हैं वे रती थीं और मकान और न भौ छासठ सैकड़े शत्रु जो सेबन की गर और कोट और दुर्ग अकामना करता है उसके लिये निरंतर | र्थात् किले बन गए थे उस समय वेदों के गीत बनाये गये हैं-वेदों में स्वामी जी के प्रथ अनुसार दस्यु लोगों को कृष्ण वर्ण स्वामी दयानन्द सरस्वतीओ ने स- अर्थात् काले रंग के मनुष्य त्यार्थप्रकाश के अष्टम समुल्लास में लि- किया है-जिस से मालूम होता है खा है कि आदि सृष्टि में एक मनुष्य कि स्वामी जी ने जो दस्यु का अर्थ जाति थी पश्चात् श्रेष्ठों का नाम श्रार्य चोर डाकू किया है वह ठीक नहीं है विद्वान देव और दुष्टों का दस्यु - क्योंकि सृष्टि की आदि में चोर डाकू र्थात् डाकू मूर्ख नाम होनेसे श्रार्य और हो जाने से क्या कोई मनुष्य काले रंग दस्यु दो नाम हुए आर्थों में पूर्वोक्त का हो जाता था इस से यह ही माप्रकार से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और नम होता है कि जो लोग अपने को शूद्र चार भेद हुए जब आर्य और द आर्य कहते थे वह अन्य देश के रहने स्युमों में अर्थात् विद्वान् जो देव - वाले थे और काले रंग के दस्यु म्य विद्वान् जो असुर उन में सदा लड़ाई | देश के रहने वाले थे अर्थात् अंग्रेजोंका बखेड़ा हुआ किया जब बहुन उपद्रव कथन इस से सत्य होता मालम होता होने लगा तब आर्य लोग यहां आकर | है कि श्रार्य लोगों का हिम्दुस्तान में बसे और इस देश का नाम श्रार्यावर्त भील गौड़ संघाल आदि जंगली और हुत्राकाले वर्ण की जातियों से बहुत भारी युद्ध रहा बंद के पढ़ने से भी यह मालूम होता है कि जिनके साथ वेदोंके गीत स्वामी जी सत्यार्थप्रकाश में लिखते बनाने वालों की लड़ाई रहती थी । हैं कि श्रार्य और दस्यु लोगों का जत्र और नित्य मनुष्यों को मारकर खून | बहुत उपद्रव रहने लगा तब लाचार बढ़ाया जाता था उन को बहुधाकर होकर अर्थात् हारकर प्रार्य लोग तिवेदों में दस्तु लिखा है - इस से भी रूपवत से इस हिन्दुस्तान देश में भाग छाये ष्ट मिट्ट होता है कि वेद सृष्टि की परंतु आश्चर्य है कि बेदों को ईश्वर का
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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