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मार्यमतलीला।
(३) रीतिसे होना या मुशकिल है? - । उपादान से ही बनाया । तो कृपा पांत् लिख देते कि बालक ही पैदा करके यह भी कह दीजिये कि ईश्वर हुवे थे और जवान होने तक बिना | ने मष्टि की आदि में पहले मिट्टी के खाने पीने के बढ़ते रहे थे उनको पुतले जवान मनुष्यों के आकार बमाता के दूध श्रादिक की कछ प्रा- नाये होंगे वा लकड़ी वा पत्थर वा वश्यकता नहीं थी
किसी अन्य धातुको मूर्ति पड़ी होंगी स्वामी जी ने यह भी मिखाया है | और फिर उन मूर्तियों के अवयवों कि जीव प्रकृति और ईश्वर यह तीन | को हट्टी चमड़ा मांस रुधिर प्रादिक बस्तु अनादि हैं इनको किसीने नहीं | के रूप में बदल दिया होगा ? परबनाया है और उन लोगों के खंडन न्तु यहां फिर आप को मुशकिल प. में जो उपादान कारण के बिदून ज-ईगी क्योंकि स्वामी जी यह भी लिगत् की उत्पत्ति मानते हैं स्वामी जी | खते हैं कि “जो स्वाभाविक नियम ने लिखा है कि यद्यपि ईश्वर सर्व अर्थात् जैमा अग्नि उष्णु जम्न शीतल शक्तिमान् है परन्त मर्व शक्तिमान् | और पृथिव्यादिक मब अष्टों को विका यह अर्थ नहीं है कि जो अमम्भव परीत गुण बाले ईश्वर भी नहीं कर बात को करमकै, कोई वस्तु बिना | सक्ता” तब ईश्वर ने उन पुतलों को उपादान के बनती हुई नहीं देखी कैमे परिवर्तन किया होगा। गरज जाती है कम हेतु उपादान का ब- स्वामी जी की एक असम्भव बात मा. नाना असम्भव है अर्थात् ईश्वर उ- | नकर आप हज़ार मुशकिलों में पष्ट पादान को नहीं बमा मक्ता है। प्रय जावेंगे और एक असम्भब बातके मिद्ध हम स्वामी जी के च नोंसे पूछते हैं कि करने के वास्ते हज़ार अमम्भन बात सृष्टि की प्रादिमें जब ईश्वर ने एक | मानकर भी पीछा नहीं छुटैगाअमम्भव कार्य कर दिया अर्थात बि- स्वामीजी ने ईमामसीह की उत्प. ना मा बाप के जवान मनुष्य कूदते ति के विषय में लिखा है कि यदि फांदते पैदा कर दिये तो क्या उनका | बिना पिता के ईसाममोह की नु. शरीर भी बिना उपादान के बना. त्पत्ति मानली जाधै तो बहुत मी दिया ? इम के उत्तर में स्वामी जी के / कमारियों को बहाना मिलगा कि इम मिद्धान्त को लेकर कि बिना उ. वह गर्भ रहने पर यह कह देवें कि पादान के कोई वस्तु नहीं बन सक्ती | यह गर्भ हम को ईश्वर से है हम कहै आपको यह ही कहना पड़ेगा कि } हते हैं कि यदि यह माना जावै कि