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________________ आर्यमतलीला ॥ जिस कारण तुम उन २ शत्रुओं के नगरों को बिदारण करते हो हम काया आप हम सब लोगों को मत्कार करने योग्य हो ।” ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ८० ऋचा १३ अपनी सभाओं का शत्रुओं के साथ अच्छ प्रकार युद्ध करा शत्रु को मारनेवाल .... आप का यश बढ़ेगा ।" ऋग्वेद तोमरा मंडल सूक्त ४६ ऋ० २ प्रसिद्ध बीरों को लड़ाइये शत्रुओं को पराजय को पहुंचाइये । ऋग्वेद प्रथम मंडन सूक्त १६२ ऋचा १ ऋतु २ में यज्ञ करने हारे हम लोग संग्राम में जिस वेगवान विद्वानों में वा दिव्य गुणों से प्रगट हुए घोड़े के पराक्रमों की कहेंगे उम हमारे घोड़े के पराक्रमों को मित्र श्रेष्ठ न्यायाधीश ज्ञाता ऐश्वर्यवान बुद्धिमान और ऋविज् लोग छोड़के मत कहैं और उसके उनकी प्रशंमा करें । प्रनुकूल - ऋग्वेद चौथामंडल सूक्त१८ ऋ० का भावार्थ। जैसे नदियां खलल अरांती हुई saar करती हुई तटों की तोड़तो हुई जाती हैं वैसे ही सेना शत्रुओं के सन्मुख प्राप्त होवे । ऋग्वेद चौथा मंडन सूक्त १९ ऋ०८ सेना से शत्रुओं का नाश करो जैसे नदी तटको तोड़ती है । ऋग्वेद चौधा मंडल सूक्त ४९ ऋचा २ वह महाशयों के साथ संग्रामों में शत्रुओं की सेनाओं और शत्रुओं का नाश करता है उसको यशस्वी सुनता हूं 1 ( ६३ ) ऋग्वेद मम मंडल सूक्त ६ ऋचा ४ हे मनुष्यों जो मनुष्यों में उत्तम २ बाशियों से बरा चलना जिसमें हो उम अन्धकार में प्रान्न्द करती हुई पूर्वको चलने वाली सेनाओं को करता है... उसका हम स्लोग मत्कार करें ।,, वेद में बहुत से गीत ऐसे मिलते हैं जो योधा लोग अपनी शूरवीरता की प्रशंसा में और लड़ाई की उत्तेजना में गाया करते थे तथाः ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १६५ ऋ० ६-८ " जमे बन्नवान् तीव्र स्वभाव वाला में जो बलवान् ममग्र शत्रुके बधसे न्हवाने वाले शस्त्र उनके साथ नमता हूं उसी मुझको तुम सुखसे धारण करो। " हे प्राणके ममान प्रिय विद्वानो ! जिसके हाथमें वज है ऐसा होने वाला मैं जैसे सूर्य मेघको मार जलों को सुन्दर जाने वाले करता है वैसे अपने कोघसे और मन से बल से शत्रुओं को मा रता हूं । "" 67 ऋग्वेद तोमरा मंडल सूक्त ३१ ० १ हे सेना के अधीश जैसे हम लोग मेघके नाश करने के लिये जो बल उस के लिये सूर्यके ममान संग्राम के सहने वाले बलके लिये आपका आश्रय करते हैं वैसे आप भी हम लोगोंको इस बल के लिये बर्ती । " ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त ४ ऋ० १ आपके साथ संग्रामको करते वा कराते हुए हम लोग मरण धर्म वाले शत्रुनोंकी सेनाओं को मब ओरमे जीतैं इससे धन, और यश से युक्त हावें, (6
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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