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________________ (५४) मार्यमतलीला। ही संदेह रहेगा कि वेदों में और भी । बैगी वा प्रथम लकीर चनो सिलाई सर्व प्रकार के विषय होंगे जो इन्होंने | जायेगी ? यदि किसीको होशपार ब.। नहीं लिखे हैं। इस कारण आप हमारे | ढईका काम सिखाना हो तो उसको प्रकहने से अवश्य वेदों को प। म मेज कुर्सी व सुन्दर सन्दूकची मा जब हम यह बात कहते हैं कि वेद दि बनाना और स्वकड़ी पर सदाईका गंवारों के गीत हैं तो श्राप को अच- काम करना सिखाया जावेगा वा प्रथम म्भा होता है क्योंकि स्वामी जी ने | कुल्हाईसे लकड़ी फाड़ना ! इस ही प्रइसके विपरीत भाप को यह निश्चय कार प्राप स्वयं विचार मारले कि यदि कराया है कि संसार भर का जो शान | वदोंमें उन जंगली मनुष्यों के वास्वेचिहै और जो कछ विद्या धार्मिक वा क्षा होती तो कैसी मोटी और गबारू। लौकिक संसार भर में है वा भागेको शिक्षा होती। होने वाली है वह सब वेदों में है और इस के उत्तर में श्राप यह ही करेंगे वेदों से ही मनष्यों ने सीखी हैं। कि उसके वास्ते प्रथम शिक्षा बहुत ही परन्त यदि आप जरा भी विचार क- मोटी मोटी बातोंकी होती और क्रम २ रेंगे तो आप को हमारी बातका कुछ / से कुछ युख बारीक बातोंकी शिक्षा बभी अचम्मा नहीं रहेगा क्योंकि स्वा-ढ़ती रहती परन्तु यदि शाप बंदोंको मीजी यह भी कहते हैं कि सष्टिको मा- पढ़े तो आप को मालूम हो जाये कि दिमें जो मनुष्य बिना मा बाप के ई- स्वामी दयानन्दजीके अयोंके अनुमार श्वरने उत्पन्न किये थे, बह पश ममान | वदा | वेदोंका सब मज़मून प्रारम्भसे अस तक अज्ञानी और अंगली वहशियोंकी स एक ही प्रकार का है। यद्यपि उस में मान अनजान रहते यदि उनको वेदों कोई शिक्षाकी बात नहीं है बल्कि साके द्वारा माम न दिया जाता। अब | धारण कमियों के गीत है, परन्तु यदि श्राप विचार कीजिये कि ऐसे पा स-| श्राप उन गीतोंको शिक्षाका ही मज. मान मनष्योंको क्या शिक्षा दी जास-भून कहैं तो भी जिस प्रकार और जिस । कती है? यदि किसी अनपढ को प-विषयका गीत प्रारम्भ में है सतक | ढाया जावै तो क्या उसको वह विद्या | वैसा ही चसागया है। श्राप जानते हैं पढ़ाई जायेगी जो कालिगों में एम० ए० कि ग्रामीण लोन जो खेती करते और | वा बी ए. वालों को पढ़ाई जाती है:/पशु पालते हैं वह वहशी जंगलो कोगोंसे | वा प्रथम मश्रा वगैरह अक्षर सिखाये | बहुत होशमार हैं क्योंकि कमसे कम घर जायेंगे ? यदि किसीको सुन्दर तमवीर बनाकर रहना, नागरे पक्षाकर रोटीसा | वनाना सिखाया जावं तो उसको प्रथम ना बख पदमना, धादिक बहुत काम हो मुन्दर तसवीर बैंचनी बताई जा-| जानते हैं, और वहशी लोग इन कामों
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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