SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आर्यमतलीला ॥ (२३) हो सकता है क्योंकि संसार में अनेक | हम यहां नकल करते हैं। विद्या वर्तमान है किम किम विद्या स्वामी जी ने वेद की ऋचा लिख | 'मा बर्णन हमारे शार्थ भाई बंदी में कर उनका भाचार्य इम प्रकार लिखा है। दिखावेंगे। एक गणित विद्या मोही (एकाच मे.) पन मन्त्रों में वही ' देखिये कि यह कितनी बड़ी विद्या प्रयोजन है फिर भी जोर रेखा है । साधारण गणित, बीजागा यात. रेखा भ६ म जो तीन प्रकार की गणित विद्या गांगत और तृमोगा गागात भादिक सताया है उनमें मे प्रथम अंक जो जिसकी बहुत शाखा है । इम विद्या संख्या है (१) मो दो बार गिनने मे बजारों महान् ग्रन्ध हैं जिनको पढ़-दी की बाचक होती है जैसे १+१=२ ते २ मनुष्य की आयु व्यतीत होजाय एसे ही एक के भाग एक तथा एक के और विद्या पढना वाकी रह जाय। ह-आगे दो वा दो के आगे एक आदि मारे पाठकों में से जो भाई मरकारी जोड़ने से भी समझ लेना, इसी प्रकार मदरसों में पढ़ चके हैं उन्हों उकलै | एक के माथ तीन जोड़ने से चार तथा दम ( Buchid ) और जबर मुकाबला तीन को तीन ३ के साथ जोड़ने से (६) ( Algebra ) पढ़ा होगा और उम ही अथवा तीन को तीन से गुणाने से ३४३ से उन्होंने जांच लिया होगा कि यह कैसा गहण बन है। परन्तु जो रेखा इमी प्रकार चार के साथ चार पांच गशित स्कूलों में पढ़ाई जाती है वह | के माथ पांच छः के माथ छः पाठ के तो बच्चों के वास्ते प्रारम्भिक बिद्या माथ पाठ इत्यादि जोड़ने वा गुणने है इसमे अधिक यह विद्या कालिजो तथा मब मन्त्रों के आशय को फैलाने में बी. ए. और एम. ए. के विद्यार्थि- मे मब गणित विद्या निकलती है जैसे यों को पढ़ाई जाती है और उममे भी पांच के माथ पांच (५५) वैसे ही पांच २ अधिक यह बिद्या एम. ए पाम करने | छः २ (५५) (६६) इत्यादि जान लेना के पश्चात् वह पढ़ते हैं जो चांद भर्य चाहिये। ऐसे ही कुन मन्त्रों के अर्थो और तारों को और उन की चालको को आगे योजना करने से अंको मे प्र. जांचते और भापते हैं। यह गणित नक प्रकार की गणित विद्या मिद्ध होती विद्या इतनी भारी होने पर भी स्वामी है क्योंकि इन मन्त्रों के अर्थ और अदयानन्द सरस्वती जी इस गित विद्या | नेक प्रकार के प्रयोगों से मनुष्यों को को वेदों में हम प्रकार सिद्ध करते हैं। अनेक प्रकार की गणित विद्या अवश्य ऋग्वेदादि भाष्य भमिका में स्वामी जाननी चाहिये और जो कि वेदों का जी ने गणितविद्या विषय जिम प्र- अंग ज्योतिष शास्त्र कहाता है उसमें कार लिखा है उन सबके भाषार्थ की भी इसी प्रकार के मन्त्रों के अभिप्राय
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy