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________________ बनावे" मार्यमनलीला ॥ काली और नीचे से जान होती है।। इममे भी मिद होता है कि इम मत परन्त इतनाही इशारा वारने पर रेल के बनने से पहले बिमान और नाव और जहाज बनाना मीख गये। काम में लाये आते थे परन्तु वेदों में सूक्त १११ के अर्थ में एमा प्राशय मी कहीं इनके बनाने की तरकीब नहीं। लिखा है । “अग्नि और जनसे मना मिलती है। इमही प्रकार मक्त ११८ के अर्थों में | ___ “हे शिल्प कारियो हमारे लिये ऐमा आशय प्रगट किया हैविमान आदिक बना” __ "बिमान मे नीचे उनरी” बिमान इसमे नो स्पष्ट मिद्ध होगया कि प-जिनमें ऊपर नीचं पीर बीच में तीन इल मे कारीगर लोग बिमान बनाना बन्धन हैं और बाज पखरू की ममान जानते थे । वदों में कहीं बिमान ब- जिसका रूप है वह तुमको देश देशानाने की तरकीब लिखी मो गई ही न्तर को पहुंचाते हैं। नहीं है इम हेतु वेद कदाचित भी सष्टि जो माहब ! इम में तो बिमान ब. की प्रादि में नहीं हो मकते हैं बरण नाने की तरकीब स्निग्न दी और हमारे उम ममय के पश्चात बने हैं जब कि माया भाई इमसे बिमान बनाना बिमान प्रादिक बनाना जान गये थे। मीख भी गये होंगे हमके अतिरिक्त और यदि कुल बंद उम ममय में नहीं और भी कहीं २ हम ही प्रकार ऐंजन बना है तो यह मक्त ती अवश्य ऐसेही बनाना मिखाया गया है। दखिये नीचे समय का बना हुआ है। लिखे मूक्त में जब यह यता दिया कि इस ही प्रकार उक्त प्रथम मंडन के अग्नित्नान २ होती है और रथके प्रसक्त ११६ की ऋचा १ ली और तीस- | गल भागमें उभको लगानी चाहिये तब री के अर्थ में लिखा है: रेलगाड़ी चलाना सिखाने में क्या क“हे मनुष्यो जैसे सरुच पुण्यात्मा शि- मर छोड़दी। रूपी अर्थात् कारीगरों ने छोड़े हुबंधि- ऋग्वंद के पांचवें मंडल के सक्त ५६ मान प्रादि रथ मे जो स्त्री के समान की छठी ऋचाका अर्थ इस प्रकार पदार्थों को निरन्तर एक देश मे दृमरे ! लिखा हैदेशको पहुंचाते हैं वैसे अच्छा यत्न क- "हे बिद्वान् कारीगरो ! आप लोग रता हुआ मैं मार्ग वैसे एक देश को | बाहन में रक्त गुगों से विशिष्ट घोष्ठिजाता हूं” | योंके मदृश वास्नाओं को युक्त कीजिये "हे पवन "तुम शत्रों को मारने वा- रथों में लाल गुण वाले पदार्थों को ले सेनापति उन नावोंसे एक स्थान युक्त कीजिये और अग्रभाग में प्राप्त से दूसरे स्थान को पहुंचानो।” करने के लिये जाने वाले धारण और |
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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