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________________ ( १६ ) भार्यमतलीला। हैं गांव के जमाहे मोटा कपड़ा बुन , पानमें भी कोई ऐसा उपदेशक नरूपलेते हैं। गांव के ही घर चटाई और जाता जो हम बात की शिक्षा टोकरे घनानेते हैं गंवार लोग खेत दवा किसनय बिना दूसरे के मिखाबा लेते हैं परन्त वह बालक सर्व विये सपने विचारमे कुछ भी बिज्ञान द्वान तो क्या प्राप्त करेगा मानी ग. प्राप्त नहीं कर सका है तो जापान वार बालकों के बराबर भी जान र ! भी पंचाग प्रभागा ही रहता । पररखने वाला नहीं होगा । ऐमी दशामें न्तु यह तो अभागा हिन्दुस्तान ही है हिन्दुस्तानियों को स्वामीजी का यह | जो स्वयम् निरुद्यमी हो रहा है और उपदेश कि विचार और सरुवा क निसनाही होने का इम ही को रने से कोई विज्ञान मनुष्य को प्राप्त उपदेश भी मिलता है । हे प्यारे प्रार्य नहीं हो सका है बरगा जो ज्ञान भाईयो ! जरा विचारकी आंखें खोलो प्राप्त होता है वह वदों से ही होता और अपनी और अपने देशकी दशा है क्या यह प्रभाग हिन्दुस्तानियों के " | पर ध्यान दो और उद्योगमें लगाकर साथ दुश्मनी करना नहीं है ?।। यदि मविज्ञान भी कुछ संमार में | इस देश की उन्नति करो-हम प्रापको है वदों ही से प्राप्त होता है तो अब धन्यवाद देते हैं कि श्राप परोपकार स्वयम् भी करते हैं श्रीर अन्य मनुकि स्वामी दयानन्द मी ने वेदों का ज्यों को भी परोपकारका उपदेश देते भाषा मे सरल अयं कार दिया है ह हैं परन्तु कृपा कर ऐसा उपदेग मत मारे भायां भाई इन बदाका पढ़कर दीगि जिम एनकी उम्नतिमें बाधा क्यों नाना प्रकार की एमी लान नहीं बनालेते हैं जो अंगरेजों और जापा पड़े बरण मनुष्य जानकी शक्तिको | प्रकट करो बिचार करना, बतु स्व. नियों को भी चकित कर हैं परन्तु मादी में जो चाहे प्रशंसा करदी गाव पर भात्र योजना और बस्तु स्वभाव जा. स्वामी जी के बनाये वदोंके अर्थको प नफर उनसे नवीन २ काम बनाना ढकर तो ग्वाट बनना वा मिट्टीके ब मिखानी--बदों के भरोसे पर मत रहो तन बनाना प्रादिक बहुत छोटे २ उम में कल महीं रक्खा है। यदि इस काम भी नहीं मीखे जा सकते हैं । मा- वातका श्राप का यकीन न आवे तो पानियों ने आशयन घोड़े ही दिनों कृपाका एकबार स्वामीजीके अर्थ समें बड़ी भारी उन्नति कर ली है और | हित वेदाको पर जाइये तब भाप पर अनेक प्रकार की कान और प्रौगार | मघ कगाई घुस्न वावगी--दूरको ही प्रबनाकर अनेक अद्भुत और मस्ती शंसा पर मत रहो कल जांच पड़ताल बस्तु बनाने लगे हैं परन्तु यदि ला- | से भी काम लो-फारमी और उर्दू के
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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