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________________ मार्यमवलीला १८३ ती है कि अमुक बस्तु रक्खं वा अ. आजादीके खपाल को लेकर मय वाहिमुक न रक्खू महाव्रत तो घिना यात और झटका पाठ पढ़ाना शुरूकर मर्यादा ही होता है इस हेतु पाप ही दिया और बहुत मी बातों को प्रससोचिए कि महाव्रती योगी वस्त्र रक्खे- म्भव और नामुमिकन बताकर भोले गा वा नहीं ? पा एक लंगोटी रखगालोगों के खयाम्न को बिगादिया ॥ भी अपरिग्रद महावतको भंग नहीं क- अफमोम है कि स्वामीजी के ऐसे घ. रेगा ? अवश्य करेगा--महाव्रती को यो तांबसे हमारे प्रार्यभाई जीवात्माकी | | गदर्शनके अनमार अवश्य नम रहना शक्तियों को समझनेसे वंचित रहेजाते होगा। इसके अतिरिक्त पारे भाइयो | हैं और अंगरेजीकी तरह जह पदार्थ जब भाप योगके प्राठी अंगों को मन को ही शक्तियों के ढंढने और मानने गे और वैराग्य हो को योगका साधन | में लगते जाते हैं-महर्षि पातञ्जलि ने जानगे तब आपको स्वयम् निश्चय हो योगशास्त्र में जो आत्मिक अतिशय जायगा कि योगीको वस्त्र, लंगोटी का वर्णन की हैं उनका सारांश हम नीचे ध्यान तो क्या अपने शरीर का भी लिखते हैं और अपने प्रार्य भाइयोंसे ध्यान नहीं होता है-नन रहने की प्रार्थना करते हैं कि इनमें सपना विलज्जा करमा वा अम्प कारणोंसे वस्त्र धार देव-और सात्मिक शक्तियोंकी की प्राबश्यक्ता समझना योगसाधन | खोज में लगें। का बाधक है और जिमको इस प्रकार | अहिंमा प्रतिष्ठायांतत्संबिधौ बेर साउना आदिकका ध्यान होगा उमसे | त्यागः ॥ २ ॥ ३५ ॥ तो संसार छूटा ही नहीं है वह योग अर्थ--योगीका चित्त जब अहिंसा में | साधन भीर मुक्तिका सपाय क्या कर स्थिर हो जाता है तब उसके समीप कोई प्राणी बैंर भाव महीं करता है प्यारे भाइयो ! माधुके वास्ते मोक्षके | अर्थात् शेर, सांप बिच्छू प्रादिक दुष्ट भाधगमें नग्न रहना इतना आवश्यक | जीव भी उसको कुछ बाधा नहीं पहुं. होने पर भी हमारे बहुतसे मार्य भाई चा सके हैं। मग्न अवस्थाकी हमी उहाकर क्या धर्म " शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतराध्याकी हंसी नहीं उडाते हैं: अवश्य 8-मासंकरस्तत्प्रविभाग संयमात् सर्व हाते हैं। भतरुतधामम् ॥ ॥ ३ ॥ १७ मुश्किल यह है कि स्वामी दयानन्दजी अर्थ- शब्द भार्थ और जानमें परमे अंगरेजी पढ़े हुये भाइयोंको अपनी स्पर घनिष्ट सम्बन्ध होनसे शब्द सओर आकषित करने के वास्ते उनको करता है और उनके विभागमें संयम
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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