SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्यमतलीला ॥ अर्थ--वेदोक्त कर्मसे भी मुक्ति नहीं। किया करें। अब हम आगामी लेख में यह होमती क्योंकि यदि अगसे कार्य सिद्धि मिद करेंगे कि स्वामी दयानन्दने मुक्ति भी हो अर्थात् स्वर्गादि प्राप्ति भी हो के विषयमें जो २ कपोल कल्पित मितभी वहांसे फिर यापिस पाना होगा द्वांत सत्यार्थप्रकाशमें वर्णन किये हैं वे नकारयालयात्कृतकृत्यतामग्नवत्या मब उनके मान्य सांख्य दर्शन से ख-1 नात् ॥ ॥ सां०॥ प्र०३ ॥ स. ५४ गिडत होते हैं। अर्थ--कार शामें लय होने से कृतार्थता यामत लीला॥ नहीं है मनके ममान फिर मठनेसे प्र-| र्थात् प्रवत वादियोंके अनमार यदि (२५) एक ब्रह्म ही माना जोवे और मर्व जो पिछले अंक में हमने स्वामी दयावों को जान काही स्वरूप कदाजावे और नन्द और प्रार्य भागोंके परन मान्य | जीवके अमल में नय होआनेको मक्ति मा- मांख्य दर्शन से दिखाया है कि मह-1 मा जाये तो कार्य मिटु नहीं होता है |र्षि कपिलाचार्य ने किम ओर के माथ क्योंकि कन्कत्यता तो तय हो जय कि मुक्ति से पापिम पाने के मिद्धान्त का फिर कभी बंधन न हो परन्तु यदि | विरोध किया है और पूरे तौर पर एक ही प्रल है और उम ही का अंश | मिद्ध किया है कि मुक्ति से कदाचित् बंधन में प्राकर जीव रूप हो जाता है भी जीव वापिम नहीं प्रामकता है जो जीव ब्रह्म में लय होने के पश्चात् फि- अब हम यह दिखाना चाहते हैं कि र बंधनमें प्रामक्ता है अर्थात् हबक ही मुक्ति के विषय में जो जो पापोल क. दशा रहेगी... | ल्पित मिदान्त दयानन्द जी ने मत्या. पाठक ! देखो, मांरूप दर्शनमें महर्षि प्रमाण में वर्णन किये हैं वह सबही कपिणाचार्य्यने मुफिसे वापिस लौटने उनके मान्य ग्रन्थ सांख्य दर्शन से खके सिद्धांतका कितना जोरके माघ वि- डिन होते हैं। रोध किया है और स्वामी दयानन्द ने स्वामी जी मुक्ति से वापिस पानेके | उनके एक सूत्रका कितना दुरूपयोग मिलांत को मिद्ध करने के वास्ते एक करके भोले मनुष्योंको अपने माया- अद्भुत मिद्धान्त यह स्थापित करते हैं। जालमें फंसाने की चेष्टा की है। हिमक्ति भी कर्मों का फग है और हम अपने श्रार्य भाइयों में प्रार्थना इस बात को लेकर मत्यार्थ प्रकाश में करते हैं कि वे अपने मान्य ग्रन्थ मां-लिखते हैं कि कर्म अनित्य है नित्य रूप दर्शन को प्राद्योपान्त पड़े और नहीं हो सकते और कर्मों का फग ई. | स्वामी दयानन्द के वाकयोंको ही ईश्वर |श्वर देता है इस हेतु यदि ईश्वर अनि| वाक्य न समझकर कुछ उनकी परीक्षाभी | त्य कर्मों का फग नित्य मुक्ति देव तो
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy