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________________ तृतीया एकवचन-इणा, इण, जेम-किणा, केण. पञ्चमी , -म्हा, इणो, ईस; (बीजा प्रत्ययो 'सध: शब्द माफक) जेम-कम्हा, किणो, कीस (वीजा 'सन्च । माफक) षष्ठी एकवचन-आस, स्स, जेम-कास, कस्स, , बहुवचन-आस, एसिं, ण, जेम-कास, केसि, काण. सप्तमी एकवचन-आहे, आला, इआ; (वीजा 'सन्च' माफक ) नेम-काहे, काला, कइआ; ( वीजा 'सव ' माफक) स्त्रीलिङ्ग 'का, की ' आ सर्वनामनां रूप ' आकारान्त तथा ईकारान्त' स्त्रीलिंग नामोनी जेवांन छे; पण विशेषछे ते कहीए छीए 'की' शब्दनां प्रथमा तथा द्वितीयाना एकवचनमां तथा षष्ठीना बहुवचनमां रूपो थतांज नथी वळी 'की' शब्द थकी षष्ठीना एकवचनमा 'स्सा, से, आस' आ त्रण प्रत्ययो वधारे लागेछे जेमकिस्सा, कीसे, कास (वीनां 'सही' प्रमाणे) नपुंसकनपुंसकमां 'क' शब्दनुं रूप.प्रथमाना तथा द्वितीयाना एकवचनमा 'कि' थाय छे. अने वाकीनां वध रूपो 'सव । नपुंसक लिंगनी माफक समजवां. . एकवचन १-कि २-, ३-किणा, केण 'क'-(नपुंसकलिङ्ग). - बहुवचन काई, काइँ, काणि. " " केहिं, केहि केहि.
SR No.010661
Book TitlePrakrit Margopdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1919
Total Pages195
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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