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तातें अपना काल पाय जो, इष्ट-स्वजन मर जावै । तापर शोक करै को भविजन, जो सुबुद्ध कहलावै* ॥७॥ वक्षनपर लग कर झड़ पड़ते, पत्र फूल फल जैसे । जन्म कुलोंमें लेकर प्राणी, मरण लहैं है तैसे ॥ या विध नियम अखंडित लखिके, हर्ष शोक किम कीजे । बुधजन वस्तुस्वरूप विचारत, समता भाव धरीजे+॥८ दुर्निवार भावीवश मानुष, प्रियजन-मरण करेको । अन्धकारमें नृत्य करै वह, तिसपर शोक करै जो॥ सेन्मतिसे सब वस्तु जगतमें, नाशवन्त लखि भाई।
सर्व दुखसंततिनाशक सेवहु, धर्म सदा मन लाई ॥९॥ नाम् । स्वकालमासाद्य निजे हि सस्थिते,करोति क शोकमत. प्रबुद्धधी ॥७॥ भवन्ति वृक्षेषु पतन्ति नून, पत्राणि पुष्पाणि फलानि यद्वत् । कुलेषु तद्वत् पुरुषा किमत्र, हर्पण शोकेन च सन्मतीनाम् ॥८॥ दुर्लध्याद्भवितव्यता व्यतिकरानष्टे प्रिये मानुषे, यच्छोक क्रियते तदत्र तमसि प्रारभ्यते नर्त्तनम् । सर्व नश्वरमेव वस्तु भुवने मत्वा महत्या धिया, निर्धूताखिलदुखसततिरहो धर्म सदा सेव्यताम् ॥९॥ पूर्वोपार्जित ___ * यह मूलका भावानुवाद है। शब्दानुवाद यह हो सकता है-दो० "पतन हेत रवि ज्यौ उगै, त्यो नरदेह बखान । काल पाय हितु-नशत, को, कर है शोक सुजान ।" + यह मूलका भावानुवाद है । शब्दानुवाद यह हो सकता है
दो०-हो तरुपर निश्चय गिरै, पत्र फूलफल जेम ।
कुलमें नर त्यौं, सुबुधकै, हर्ष शोक फिर केम?" श्रेष्बद्धि-विवेकबुद्धि । २ समस्त दु खोंकी परम्परा-परिपाटीको नाश करने
वाला।