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________________ ४२ इस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, चारो ही वर्णके सब मनुष्य नित्य पूजनके अधिकारी है और खुशीसे नित्यपूजन कर सकते है। नित्यपूजनमे उनके लिये यह नियम नहीं है कि वे पूजकके उन समस्त गुणोंको प्राप्त करके ही पूजन कर सकते हो, जो कि धर्मसंग्रहश्रावकाचार और पूजासार प्रथोमे वर्णन किये हैं। बल्कि उनके विना भी वे पूजन करसकते हैं और करते हैं । क्योकि पूजकका जो स्वरूप उक्त प्रथोमे वर्णन किया है वह ऊचे दर्जेके नित्यपूजकका स्वरूप है और जब वह म्वरूप ऊचे दर्जेके नित्यपूजकका है तब यह स्वत सिद्ध है कि उस स्वरूपमे वर्णन किये हए गुणोमसे यदि कोई गुण किसीमे न भी होवे तो भी वह पूजनका अधिकारी और नित्यपूजक हो सकता है-दूसरे शब्दोमे यो कहिये कि जिनके हिंसा, झट, चोरी, कुशील (परस्त्रीसेवन)-परिग्रह- इन पच पापो या इनमसे किसी पापका त्याग नही है, जो दिग्विरतिआदि सप्तशीलवत या उनमसे किसी शीलवतके धारक नहीं है अथवा जिनका कुल और जाति शुद्ध नहीं है या इसी प्रकार और भी किसी गुणसे जो रहित है, वे भी नित्यपूजन कर सकते हैं और उनको नित्यपूजनका अधिकार प्राप्त है। यह दृमरी बात है कि गुणोकी अपेक्षा उनका दर्जा क्या होगा? अथवा फलप्राप्तिमे अपने अपने भावोकी अपेक्षा उनके क्या कुछ न्यूनाधिक्यता (कमीबेशी) होगी और वह यहापर विवेचनीय नहीं है। यद्यपि आजकल अधिकाश ऐसे ही गृहस्थ जनी पूजन करते हुए देखे जाते है जो हिसादिक पाच पापोके त्यागरूप पंचअणुव्रत या दिग्विरति आदि सप्तशीलवतके धारक नहीं है, तथापि प्रथमानुयोगके प्रथोको देखनेसे मालूम होता है कि, ऐसे लोगोका यह (पूजनका) अधिकार अर्वाचीन नहीं बल्कि प्राचीन समयसे ही उनको प्राप्त है। जहा तहा जैनशास्त्रोमे दियेहुए अनेक उदाहरणोसे इसकी भले प्रकार पुष्टि होती है - लंकाधीश महाराज रावण परस्त्रीसंवनका त्यागी नहीं था, प्रत्युत वह परस्त्रीलम्पट विख्यात है । इसी दुर्वासनासे प्रेरित होकर ही उसने प्रसिद्ध सती सीताका हरण किया था। इसविषयमें उसकी जो कुछ भी
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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