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नरेन्द्रछंद (जोगीरासा)। मिलै न एक दिवस भोजन या, नींद न निशको आवै । अग्निसमीपी अम्बुजदलसम, यह शरीर मुरझावै ॥ शस्त्र व्याधि जल आदिकसे भी, क्षणभरमें क्षय हो है। चेतन! क्या थिरबुद्धि देहमें ? विनशत अचरज को है ?॥२॥ चर्म मैंदी दुर्गध अशुचिमय,-धातुन भींत घिरी है। क्षुधा आदि दुख मूसन छिद्रित, मलमूत्रादि भरी है । जरत स्वयं ही जरा वह्निसों, काय कुटी सब जानैं । मूढ मनुष है इतनेपर भी, जो थिर शुचितर मानै ॥३॥ जलंबुबुद सम है तनु, लक्ष्मी, इन्द्रजालवत मानो। तीव्र पवनहत मेघ पटल जिम, धन कान्ता सुत जानो। निद्रा न रात्रौ भवेत् , विद्रात्यम्बुजपत्रवद्दहनतोभ्याशस्थिताद्यद्धृवम् ।।
अस्त्रव्याधिजलादितोऽपिसहसा यच्च क्षय गच्छति, भ्रात.कात्र शरीरके स्थितिमति शेऽस्य को विस्मयः ॥ २॥ दुर्गधाशुचिधातुभित्तिकलित सछादित चर्मणा, विण्मूत्रादिभूत क्षुधादिविलसदु.खाखुभिश्छिद्रित । क्लिष्ट कायकुटीरक स्वयमपि प्राप्त जरावह्निना, चेदेतत्तदपि स्थिर शुचितर मूढो जनो मन्यते ॥३॥ अम्भोबुद्बुदसन्निभा तनुरिय श्री
१ नरेन्द्र छद मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकारका होता है। मात्रिकमें २८ (१६+१२) मात्रा होती है और अन्तमें दो गुरु वा किसी किसीके मतसे एक वा तीन गुरु होते हैं। और वर्णिक रूप इस छदका २१ अक्षरका होता है। परन्तु मात्रा उसमें भी २८ ही होती हैं और गण उसमें भगण, रगण, नगण, नगण, जगण, जगण और यगण-इस क्रमसे होते हैं । इस पुस्तकमें इस छन्दका सर्वत्र मात्रिकरूप दिया गया है। २ कमलपत्र । ३ पानीका बुलबुला।